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बुधवार, 30 नवंबर 2016

वापिस घर लौटके आएं

जब भी बिजली चमकती है

मैं भीतर से कांप उठती हूँ

उलझ गए हैं जिंदगी के धागे

सब धुआँ धुआँ सा दिखता है

वो जिंदगी जिसमें थी भाषा

मूक हो गई खो गई है आशा

गुज़रा सावन भरा था उपवन

पड़ा अब सूखा हरा था मधुबन

चौका गया मुझको पवन का झोंका

कितनी ही बार मैंने मन को रोका

बादलों का घुमड़ना लहरों का उमड़ना

लहराती  चुनरिया बलखाती जुल्फें

घटा जैसी लगती भीगी सी अलकें

कहदो पवन से धीमे से आये

पायल बासन्ती से नगमे गाये

झनक झनक कर क्या बतलाये

मीठे मीठे बोलों से समझाए

पी पी पपीहा भी शोर मचाये

दिल की अगन भी बढ़ती जाए

कोई तो कहदे  जाके मेरे पिया से

जल्दी से वापिस घर लौटके आएं 
@मीना गुलियानी 

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