बैंकों के बाहर कतारों के नज़ारे बोल रहे हैं
आज तो नदिया के भी धारे बोल रहे हैं
ज़लज़ला आया जिंदगी में महल डोल रहे हैं
गरीबों को तो रोज़ का ही राशन जुटाना था
अमीरोँ के तहख़ाने सारे राज़ खोल रहे हैं
गरीब तो चुपचाप आधे पेट खाके सोते हैं
जिनके पास ख़ज़ाने हैं सिंहासन डोल रहे हैं
चर्चा है जग में धुआंदार हो रही जयजयकार
जाने जनता किसे नेता चुने पहनाये वो हार
कब ले करवट ऊँट जाने कब क्या हो जाए
अभी तो यह समरांगन है कौन वोट ले जाए
@मीना गुलियानी
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