आसमां को तो सभी देखते हैं
@मीना गुलियानी
ये किसी को भी मिलता नहीँ
कभी ज़मी भी सितम ढाती है
पैदावार भी यही बढ़ाती है
यहीँ पर जन्म लेते हैं सभी
मरके दफन भी होते यहीँ
मिट्टी से मिट्टी का सफर
ये ज़मी ही तो कराती है
आदमी आकाश छूना चाहता है
धूल पैरों से लिपट जाती है
रास्ता रोकती हर ख्वाहिश का
बड़े आशियां सपनों के सजाती है
ये आसमां रहता सदा अछूता ही
वक्त के आगे न किसी की चली
कितनो ने घुटने टेके हारे महाबली
जाने क्यों इन्सान नहीँ समझता
क्यों ऊँचे ख़्वाब देखता रहता है
जिनका टूटना ही यकीनी हो
ऐसे सपने वो क्यों बुनता है
बहुत खूब रचना अच्छी है
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