दूरियों का कुछ मुझे गम नहीँ
अगर फासले न दिलों में हों
नज़दीकियाँ भी तब बेकार हैं
जो ये फासले जिगर में हों
तेरा जिक्र भी चला है यूँ
क्यों न बात इस नज़र से हो
तेरी गुफ्तगू भी रही बेअसर
दिन तो ढला पर सहर न हो
तू तो आज भी गरूर है मेरा
कैसी चश्म वो जो तर न हो
कैसा बागबाँ जो खिला नहीँ
कैसा फूल जो बू में असर न हो
@मीना गुलियानी
अगर फासले न दिलों में हों
नज़दीकियाँ भी तब बेकार हैं
जो ये फासले जिगर में हों
तेरा जिक्र भी चला है यूँ
क्यों न बात इस नज़र से हो
तेरी गुफ्तगू भी रही बेअसर
दिन तो ढला पर सहर न हो
तू तो आज भी गरूर है मेरा
कैसी चश्म वो जो तर न हो
कैसा बागबाँ जो खिला नहीँ
कैसा फूल जो बू में असर न हो
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