यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

साँसों की डोर पिया तुम संग बाँधी

साँसों की डोर पिया तुम संग बाँधी
तोड़ सके न इसको कोई
 आये कितनी  भी आंधी

तुम हो मेरे चन्द्रमा तो मैं हूँ तेरी इक किरण
मन है  व्याकुल तेरे बिन जैसे हो घायल हिरण
कैसे डोलेगा वो बन बन आएगी जब आंधी

तुम हो सूरज तो धरा मैं मुक्त हो आकाश तुम
चाहे मन मेरा उड़ूँ बन पक्षी हो जाऊँ मैं गुम
ढूंढें ये जग मुझको करूँ पीर तुम्हीं संग सांझी

तेरे लिए जीवन ये मेरा कट जाए तेरे प्यार में
तेरे बिन  कुछ भी न चाहूँ मैं पिया संसार में
रास्ता रोकेगी कैसे मुझको जग की आंधी
@मीना  गुलियानी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें