तुम्हारे आँसुओं से ये धरा द्रवित हो उठती है
तुम जो हँस दो कली मन की खिल उठती है
यूँ तो हँसने रोने का रंगमंच सा होता मंचन
तुम्हारे हँसने से लगता हमने पाया है कंचन
तुम्हारी आभा बहुत नैसर्गिक पावन उज्ज्वल
तुम्हें देखकर मन में हमारे होती कुछ हलचल
तुम्हारा रूप निश्छल निर्मल मधुमास के जैसा
तारे भी झुककर देखें तुम्हें लगता है कुछ ऐसा
तेरी केशराशि चेहरे पे हवा से जब भी बिखरे
लगता है चाँद उतर आया धरा पर गलती से
प्रकृति ने तुम्हारा रूप खुद अपने हाथों से सँवारा
तुम्हें लखकर व्याकुल क्लान्त मन भूले दुःख सारा
@मीना गुलियानी
तुम जो हँस दो कली मन की खिल उठती है
यूँ तो हँसने रोने का रंगमंच सा होता मंचन
तुम्हारे हँसने से लगता हमने पाया है कंचन
तुम्हारी आभा बहुत नैसर्गिक पावन उज्ज्वल
तुम्हें देखकर मन में हमारे होती कुछ हलचल
तुम्हारा रूप निश्छल निर्मल मधुमास के जैसा
तारे भी झुककर देखें तुम्हें लगता है कुछ ऐसा
तेरी केशराशि चेहरे पे हवा से जब भी बिखरे
लगता है चाँद उतर आया धरा पर गलती से
प्रकृति ने तुम्हारा रूप खुद अपने हाथों से सँवारा
तुम्हें लखकर व्याकुल क्लान्त मन भूले दुःख सारा
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