हो सकती मेरी भी ये हार नहीँ
आज तुम प्रबल हो जीवन में
मिला सब पाया जो चाहा तुमने
क्या हुआ मैं व्यथित रहा मन में
किन्तु कोई ग्लानि नहीँ मेरे मन में
जीवन में कई जीते तो हारे भी कितने
मानते सुख पाने को विजित होने में
मैं चाहूँ सुख अपना सब कुछ खोने में
तुम्हारा बन पाऊँ क्या अपने आदर्श भुला दूँ
क्या तुम भी चाहते हो कि मैं ऐसा बन जाऊँ
वरना हाथ बंटाओ मेरा कूदो समरांगन में
फिर देख लेना मुझको जैसा चाहो वैसा बन जाऊँ
@मीना गुलियानी
आज तुम प्रबल हो जीवन में
मिला सब पाया जो चाहा तुमने
क्या हुआ मैं व्यथित रहा मन में
किन्तु कोई ग्लानि नहीँ मेरे मन में
जीवन में कई जीते तो हारे भी कितने
मानते सुख पाने को विजित होने में
मैं चाहूँ सुख अपना सब कुछ खोने में
तुम्हारा बन पाऊँ क्या अपने आदर्श भुला दूँ
क्या तुम भी चाहते हो कि मैं ऐसा बन जाऊँ
वरना हाथ बंटाओ मेरा कूदो समरांगन में
फिर देख लेना मुझको जैसा चाहो वैसा बन जाऊँ
@मीना गुलियानी
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