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रविवार, 25 दिसंबर 2016

मंजिल पाकर खुश रहूँगी

तुम कल वापिस चले जाओगे

सोचती हूँ फिर मैं क्या करूँगी

सुधियों को भूलकर जीऊँगी न मरूँगी

फिर से तुम्हारी ही प्रतीक्षा करूँगी

तुम्हारे न लौटने का दर्द सालता है

दर्द जब खत्म होगा तो क्या करूँगी

विरह की तपन तड़पाती है

विरह वेदना सिहरन बन जाएगी

तब मैं फिर क्या करूँगी

नयनों के कोरों से बहते अश्रुजल

जब भिगो देंगे तुम्हारा अन्तःस्थल

तब तुम्हारे इसी दिल में रहूँगी

फिर इंतज़ार किसका करूँगी

अपनी मंजिल पाकर खुश रहूँगी
@मीना गुलियानी 

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