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मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

जीना खुशगवार बन जाता है

ये तेरे कदमों की शायद आहट है 

तुमने ही द्वार पर दस्तक दी है 

हवा के झोंके से भी आई तेरी महक 

मेरी सांसो में जो घुलने लगी है 

एक सिहरन सी मेरे दिल में उठी है 

तुमसे मिलने की लगन  जग उठी है 

हवा ने पत्तों की बिछा दी चादर 

पाँव तुम अपना सम्भालकर रखना 

वहीँ पर कहीँ बिछा है दिल मेरा 

उसको तुम न कहीँ कुचल देना 

बड़े अरमानों से मैंने इसे संजोया है 

सिर्फ तुम्हारे लिए ही द्वार खोला है 

वरना दिल पे ताला लगा रहता है 

उदासी का पहरा सा उसपे रहता है 

तेरे आने से उमंगे दिल में जगीं हैं 

लम्हा लम्हा यूँ  तू जो मुझको मिला है 

तुम्हें  पाके जीना खुशगवार बन जाता है 
@मीना गुलियानी 

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