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रविवार, 26 अगस्त 2018

जिसकी अंतर्रात्मा शुद्ध हो

प्रेम तो ईश्वर की देन है
जरूरी नहीं तो जिस्मों में हो
यह तो आसमाँ से,ज़मीं से
चाँद सितारों से हवाओं से
इन बरसती घटाओं से
कल कल बहते झरनों से
पर्वत की श्रृंखलाओं से
दूर की अमराइयों से
वन की इन लताओं से
अपनों और बेगानों से
खामोशी से गुनगुनाने से
देश में या विदेश में भी
यह जागृत हो सकता है
यह तो पूजा है इबादत है
दिल और भावना का संगम
सत्य पर आधारित होना चाहिए
बिना छल कपट ईर्ष्या के
कहीं भी प्रकट हो जाता है
इसे छुपाना मुश्किल है
यह तो दिल की धड़कन में
संगीत की तरह बजता है
इसकी धुन वही सुन सकता है
जिसकी अंतर्रात्मा शुद्ध हो
@मीना गुलियानी 

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम की बडी़ ही सुंदर और विशद व्याख्या की है
    मीना दी

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  2. Adhbhud hai aapka lekhan, bahut hi Achcha likhti hai aap, aapke lekh padh ker bahut sukoon milta hai, apko Pranam h Madam ji

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेम जब पूजा हो जाए हर जगह हर बात में नज़र आता है ..।
    ईश्वर हो जाता है प्रेम ...

    जवाब देंहटाएं