ख़िज़ाँ ही क्यों देखूँ, चाहे ख़िज़ाँ है
बहार क्यों न देखूँ , जिसका रंग जवां है
आओ फिर से गढ़े नई परिभाषा
दोहराएँ वही प्यार की भाषा
अँधेरे से निकलें ढूँढे उजाला कहाँ है
कोई नई उम्मीद भी जगायें
बगिया को फिर से महकायें
गुलशन में नन्हीं चिड़ियाँ चहचहाएं
@मीना गुलियानी
बहार क्यों न देखूँ , जिसका रंग जवां है
आओ फिर से गढ़े नई परिभाषा
दोहराएँ वही प्यार की भाषा
अँधेरे से निकलें ढूँढे उजाला कहाँ है
कोई नई उम्मीद भी जगायें
बगिया को फिर से महकायें
गुलशन में नन्हीं चिड़ियाँ चहचहाएं
@मीना गुलियानी
Bahut khoob
जवाब देंहटाएंआप काव्यलेखन की बहुत धनी हैं
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