पूर्णिमा को चाँदनी रात थी
हम खो गए मधुरता में
लबों पे लग गए थे ताले
न तुम कुछ कह पाए
न मैं तुमसे कुछ कह पाई
जिंदगी के मधुर क्षण यूँ
बेख़बरी से गुज़रते रहे
उलझने बढ़ती ही रहीं
दिलों मेँ फासले भी बढ़े
फूलों की सुरभि खोने लगी
दिलों की पीर मुखरित हुई
वेदना के सुर चुपके से बजे
मधुर गीत के बोल न सुने
आज फिर चाँदनी रात है
बारिश का भी साथ है
पुराने गिले शिकवे मिटाएं
प्रीत की शमा दिल में जगाएं
@मीना गुलियानी
हम खो गए मधुरता में
लबों पे लग गए थे ताले
न तुम कुछ कह पाए
न मैं तुमसे कुछ कह पाई
जिंदगी के मधुर क्षण यूँ
बेख़बरी से गुज़रते रहे
उलझने बढ़ती ही रहीं
दिलों मेँ फासले भी बढ़े
फूलों की सुरभि खोने लगी
दिलों की पीर मुखरित हुई
वेदना के सुर चुपके से बजे
मधुर गीत के बोल न सुने
आज फिर चाँदनी रात है
बारिश का भी साथ है
पुराने गिले शिकवे मिटाएं
प्रीत की शमा दिल में जगाएं
@मीना गुलियानी
Nice 👌👌👌
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