आओ कहीं छिप जाएँ खो जाएँ फिर इक बार
धीरे धीरे चुपके से फिर आएगा खुमार
मुझको अभी भी याद है जब तुमसे हम मिले
कितनी सुहानी शाम थी कैसे थे सिलसिले
कैसे भुलाएं मस्त पवन वो शाम की फुहार
थामे हमारे हाथों को जब साथ तुम चले
ऐसा लगा कि जल उठे बुझते हुए दिए
तबसे तुम्हारी याद में दिल मेरा बेकरार
बरखा की रुत सुहानी लो मदमाती आ गई
दिल पे मेरे वो बिजलियाँ आके गिरा गई
ऐसे में भला रहता है कब दिल पे इख़्तेयार
@मीना गुलियानी
धीरे धीरे चुपके से फिर आएगा खुमार
मुझको अभी भी याद है जब तुमसे हम मिले
कितनी सुहानी शाम थी कैसे थे सिलसिले
कैसे भुलाएं मस्त पवन वो शाम की फुहार
थामे हमारे हाथों को जब साथ तुम चले
ऐसा लगा कि जल उठे बुझते हुए दिए
तबसे तुम्हारी याद में दिल मेरा बेकरार
बरखा की रुत सुहानी लो मदमाती आ गई
दिल पे मेरे वो बिजलियाँ आके गिरा गई
ऐसे में भला रहता है कब दिल पे इख़्तेयार
@मीना गुलियानी
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह वाह मीना जी उम्दा बेहतरीन पेशकश ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .... बेहद दिलकश रचना
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये यही कामना
प्रेम की भीगी सी कल्पना में डूबा निवेदन....सुदर
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