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गुरुवार, 26 जुलाई 2018

दोनों मर्जी है आपकी

हे मेरे गुरुदेव करुणासिन्धु करुणा कीजिए
हूँ अधम अधीन अशरण अब शरण में लीजिए

खा रही हूँ गोते मैं भवसिंधु मँझधार में
आसरा है दूसरा न कोई अब संसार में

मुझमें  है जप तप न साधन न कोई ज्ञान है
निर्लज्जता एक बाकी और बस अभिमान है

पाप बोझे से लड़ी नैया  भंवर में आ रही
नाथ दौड़ो अब बचाओ जल्दी डूबी जा रही

आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहाँ जाऊँगी मैं
जन्म दुःख से नाव कैसे पार कर पाऊँगी मैं

सब जगह से प्रभु भटककर ली शरण आपकी
पार करना या न करना दोनों मर्जी है आपकी
@मीना गुलियानी

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