एक दिन इक नन्ही तितली
उड़ती हुई आई मेरी बगिया में
बैठी वो इक फूल पे पहले फिर
वो बारी बारी से लगी कूदने
कभी इस फूल पर कभी उस पर
उसके पँख बहुत सुन्दर थे
रंग भी उनका था चटकीला
सब फूलों का पराग वो लेकर
बैठी चुपचाप मेरी हथेली पर
फिर उड़ गई वो हाथ से मेरे
अपने सारे रंग वहीं छोड़कर
मेरा मन भी वहीं खो गया
कुछ सोच में मैं खो गया
विधाता ने क्या इसको रचा है
इंद्रधनुष सा रंग इसको दिया है
मुक्त गगन में वो उड़ती है
दिल में सबके उमंग भरती है
सारा दिन फूलों से पराग चुनती
मेहनत से कभी नहीं वो थकती
रेशम सा कोमल जिस्म है इसका
जीवन में रंग भरना मैंने इससे सीखा
@मीना गुलियानी
उड़ती हुई आई मेरी बगिया में
बैठी वो इक फूल पे पहले फिर
वो बारी बारी से लगी कूदने
कभी इस फूल पर कभी उस पर
उसके पँख बहुत सुन्दर थे
रंग भी उनका था चटकीला
सब फूलों का पराग वो लेकर
बैठी चुपचाप मेरी हथेली पर
फिर उड़ गई वो हाथ से मेरे
अपने सारे रंग वहीं छोड़कर
मेरा मन भी वहीं खो गया
कुछ सोच में मैं खो गया
विधाता ने क्या इसको रचा है
इंद्रधनुष सा रंग इसको दिया है
मुक्त गगन में वो उड़ती है
दिल में सबके उमंग भरती है
सारा दिन फूलों से पराग चुनती
मेहनत से कभी नहीं वो थकती
रेशम सा कोमल जिस्म है इसका
जीवन में रंग भरना मैंने इससे सीखा
@मीना गुलियानी
सुंदर कोमल भाव लिये नाजुक सी रचना।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने तितली हमे सिखाती है लोभ न करो, हर फूल से थोड़ा थोड़ा लेती है और तृप्त हो जाती है।
बहुत सुंदर
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