यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 21 जुलाई 2018

सुबह करती हूँ ध्यान

सुबह के पौ फटते ही
उषा ने लाली बिखराई
उधर से ची ची करती हुई
इक सुंदर सी चिड़िया आई
फुदक रही थी वो डाली पर
दाना वो चोंच अपनी में भर
नन्हा चूज़ा भी था साथ में
उछल रहा था वो खुश होकर
चोंच में अपनी दाना भरकर
चिड़िया उसे खिलाती पेटभर
अपने डैनों को फैलाकर वो
नन्हे चूज़े को देके सहारा
वो गगन में उड़ना सिखाती
उसे देखना मुझे भाता है
पक्षियों का ये कलरव भी
मधुर संगीत बन जाता है
तोता मैना और कबूतर
कोआ  गौरेया और तीतर
सारे रोज़ ही दाना चुगने
पहुँच जाते हैं मेरी छत पर
प्रभु जी की ये किसी माया
कैसा उसने भी खेल रचाया
हर प्राणी को वो खुश रखता
सबका रोज़ पेट वो भरता
करती हूँ मैं उन्हें प्रणाम
रोज़ सुबह करती हूँ ध्यान
@मीना गुलियानी

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत ही सुंदर सरल सहज अभिव्यक्ति मन विभोर हुवा सच उस परमात्मा के हम सदा अनुग्रहि हैं।
    सुप्रभातशुभ दिवस।

    जवाब देंहटाएं