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रविवार, 15 जुलाई 2018

खुशबु को पाकर महकने लगे

बहुत दूर है तुम्हारे घर से
हमारे घर का ये किनारा
पर हम हवा से पूछ लेते हैं
क्या हाल है अब तुम्हारा

यूँ तो आती जाती बदली
तुम्हारी राह पे जब कौंधती है
हम चौंक उठते हैं देखकर
छुपा है इसमें तुम्हारा इशारा

फूल पत्ते सब मुस्कुराने लगे
नग्में  सब प्यार के गाने लगे
दिल को ये दिन सुहाने लगे
जुगनू भी अब जगमगाने लगे

पत्ते  चिनारों से गिरने लगे
ओस के कण बिखरने लगे
फूलों से दामन हम भरने लगे
खुशबु को पाकर महकने लगे
@मीना गुलियानी




6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह
    खुशबू को पाकर महकने लगे है
    हर सिम्त वो हूँ वो दिखने लगे है !
    क्या खूब खुशी से पोशीदा गजल मीना जी

    जवाब देंहटाएं

  2. पत्ते चिनारों से गिरने लगे
    ओस के कण बिखरने लगे
    फूलों से दामन हम भरने लगे
    खुशबु को पाकर महकने लगे बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं

  3. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 18 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. हवा उनका पैग़ाम लाए तो ख़ुशबू तो महकनी ही है ... फ़ूलिंग से दामन भरना ही है ... लाजवाब सुंदर रचना ...

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