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मंगलवार, 11 सितंबर 2018

कोहराम मचा रखा है

न कभी पूछ मुझसे वफ़ा में क्या रखा है
एक शोला सा है जो दिल में छुपा रखा है

कम नहीं होगी कभी मेरी वफ़ा तेरे लिए
वादा धड़कन ने ये कबसे निभा रखा है

ये ज़माना जिसे बेताब था दफन करने को
मैंने उस याद को सीने से लगा रखा है

सिर्फ़ नज़रों से ही बेताबी मिट जाती है
 फिर क्यों यूँ ही कोहराम मचा रखा है
@मीना गुलियानी

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह मीना जी बहुत सुंदर रचना 👌

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  2. ख़ूबसूरत रदीफ़ से सजी बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीया। मतला तो बहुत ही सरल और दिलकश है। आपकी ख़ूबसूरत कलमकारी के लिये आदरणीय गिरजानंद 'आकुल' जी का मतला नज़र करता हूँ..


    इतना चले हैं वो तेज़ सुध-बुध बिसार कर
    आए हैं लौट-लौट के अपने ही द्वार पर।

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