आज फिर धूप आँगन में खिल उठी
मन के आकाश पर छितरा गई
कैनवास पर अक्स उभरने लगे
तूलिका रंग से भरकर चलने लगी
हरे रंग से धरा की हरीतिमा झलकी
सुनहरे रंग से धूप की किरणें चमकी
हथेली मेहँदी रचाकर माथे बिंदिया लगा
फूलों के कर्णफूल पहन धरा दुल्हन सी दमकी
पैरों में महावर रचाकर रुनझुन पायल खनकी
गले में पहनी फूलमाला ओढ़ा पत्तों का दुशाला
काजल बदरी से चुरा धरा ने नैनो में लगाया
मांग में सिन्दूरी फूल चले झूमती उड़ाके धूल
स्वप्न हुए उसके सिन्दूरी हर आशा करने को पूरी
धरती ने खलिहान सजाया धन धान्य उपजाया
नए नए आयामों से भारत को उच्च शिखर पहुँचाया
@मीना गुलियानी
मन के आकाश पर छितरा गई
कैनवास पर अक्स उभरने लगे
तूलिका रंग से भरकर चलने लगी
हरे रंग से धरा की हरीतिमा झलकी
सुनहरे रंग से धूप की किरणें चमकी
हथेली मेहँदी रचाकर माथे बिंदिया लगा
फूलों के कर्णफूल पहन धरा दुल्हन सी दमकी
पैरों में महावर रचाकर रुनझुन पायल खनकी
गले में पहनी फूलमाला ओढ़ा पत्तों का दुशाला
काजल बदरी से चुरा धरा ने नैनो में लगाया
मांग में सिन्दूरी फूल चले झूमती उड़ाके धूल
स्वप्न हुए उसके सिन्दूरी हर आशा करने को पूरी
धरती ने खलिहान सजाया धन धान्य उपजाया
नए नए आयामों से भारत को उच्च शिखर पहुँचाया
@मीना गुलियानी
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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