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मंगलवार, 4 सितंबर 2018

जलाया जा नहीं सकता

सुनाऊँ क्या मैं ग़म अपना
तुझे बतला नहीं सकता
जो मेरे दिल की बातें हैं
तुझे समझा नहीं सकता

तुझे पाकर के खो देना
ये किस्मत की थी मजबूरी
मिलकर भी मिल नहीं पाए
गम भुलाया जा नहीं सकता

न जाने कैसा दौर आया
जिसने सितम है ये ढाया
जिग़र के हो गए टुकड़े
तुझे बतला नहीं सकता

गुलिस्तां ऐसा अब उजड़ा
बसाना जिसको मुश्किल है
वो शमा कैसे करूँ मैं रोशन
जिसे जलाया जा नहीं सकता
@मीना गुलियानी 

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