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बुधवार, 5 सितंबर 2018

इतरा रही थी

सूर्योदय के समय गगन की लाली
मन को आल्हादित कर रही थी
सूरजमुखी फूलों की आभा निखर रही थी
उषा नागरी भी अंबर पनघट में से
अपनी मटकी को भरने आई हुई थी
चन्द्रमा ने सितारों के साथ विदाई ली
सूरज की रश्मियाँ ज्योत्स्ना लुटा रही थीं
हरे पत्तों पर ओस की बूँदे चमक रहीं थीं
शीतल सुगंधित बयार मन लुभा रही थी
पक्षियों का कलरव सौंदर्य बढ़ा रहा था
उनकी कतार गगन की ओर जा रही थी
लोग हरी घास पर योगाभ्यास कर रहे थे
गाय के रम्भाने की आवाज़ आ रही थी
मुर्गे भी बांग देकर सबको जगा रहे थे
मंदिर में शंखनाद घण्टाध्वनि हो रही थी
बच्चे पेड़ों से अमरुद आंवले तोड़ रहे थे
किसान खेतों में ट्रैक्टर चला रहे थे
गाँव की पनिहारिनें गीत गा रही थीं
कुछ बच्चे खो खो कबड्डी खेल रहे थे
महिलाएँ आँगन में रंगोली बना रही थीं
धरा  स्वर्णिम आभा पर इतरा रही थी
@मीना गुलियानी


8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!भोर का अप्रतिम चित्रण !!!मीना जी ,लाजवाब !!!

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  2. वाह मीना जी सूर्योदय का अनुपम वर्णन। प्रसाद जी की बीती विभावरी याद दिला दी ।
    लालित्य लिये सुंदर रचना।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ७ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. सुबह सवेरे का आनंदित चित्रण।
    ऐसा आजकल कम देखने को मिलता है..या यूं कहें मिलता ही नहीं
    कहाँ अब पनिहारिन गीत गाती हैं
    कहाँ बच्चे सुबह सुबह खो खो या कब्बडी खेलते है अब ??
    बस सन्तुष्टि है कि ये सब अब अल्फाज़ो के माध्यम से देख लेते हैं।

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