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गुरुवार, 31 मई 2018

साहिल तक जाना मुश्किल है

जीने को जिए जाते हैं मगर
हर सांस का आना मुश्किल है
इक बोझ है सीने पर ऐसा
जिसको उठाना मुश्किल है

इक याद हे दिल में ऐसी कुछ
जिसको कि भुलाना मुश्किल है
इक चाह है ऐसी कुछ दिल में
जिसको कि गंवाना मुश्किल है

तूफ़ां के थपेड़ों में पड़कर अब
किश्ती का बचाना मुश्किल है
मौजों की रवानी में बहकर
साहिल तक जाना मुश्किल है
@मीना गुलियानी

बुधवार, 30 मई 2018

बिखरे सुर जो गाया

जिंदगी में इक मोड़ ऐसा भी आया
वादा किया रुकने का पर रुक न पाया

रेत सा वक्त हाथों से फिसलता गया
दीद को तरसते रहे मिला सिर्फ साया

पुकारते ही रह गए जुबां से न कह पाया
जहाँ तलक देखा ख़्वाब टूटता नज़र आया

जिंदगी के साज़ पर एक गीत सजाया
कसक दिल में उठी बिखरे सुर जो गाया
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 29 मई 2018

हर ग़म गले लगाते हैं

बुझते चिराग़ों को फिर जलाते हैं
उजड़े हुए ख़्वाबों को सजाते हैं

लम्हे जिंदगी के जो गुज़र भी गए
उनकी यादों में हम डूब जाते हैं

दर्दे दिल हमसे सहा नहीं जाता
दरिया अश्कों के हम बहाते हैं

खोए रहते हैं हम ख्यालों में
हम तो हर ग़म गले लगाते हैं
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 28 मई 2018

चाँदनी भी लगी नाचने

ज्येष्ठ की दुपहरी में तपती है धरती
मीलों तक नज़र आए बंजर सी धरती
कैसे बनाओगे आशियाना रेतीली धरती
रेत का फैला समुन्द्र उठता बवण्डर
शूल बिखरे हर पथ पर तपती धरती
फिर इन्द्र का दिल भी देखकर डोला
भेजा बादलों को बनाने उर्वर धरती
बादल जो गरजे तो बरसी बदरिया
कुहुक उठी कोयल मोर झूमे गोरैया
खिल उठे कमल दल भरे पोखर तलैया
धरती फिर झूम उठी पहन पायल उठी
ओढ़ ली धानी चुनरिया गगरी छलक उठी
चंदा की चाँदनी, झिलमिलाती रात में
ले सितारों को संग , आई खुशियाँ बाँटने
लेके धरा को संग चाँदनी भी लगी नाचने
@मीना गुलियानी
ए -180 , जे डी ए  स्टाफ कालोनी
हल्दीघाटी मार्ग ,जगतपुरा
जयपुर -302017

रविवार, 27 मई 2018

अब तो मुझे अपनाओ

प्रभु जी मेरी विपदा आन मिटाओ

फँस गया मैं भंवरजाल में
सत्यपथ मुझे बतलाओ

रास्ता भूला पथ है अँधेरा
आप ही मार्ग दिखाओ

मुझसा न दुखियारा जग में
अब तो फन्द कटाओ

धीरज गया धर्म भी छूटा
आफत आन मिटाओ

शरण आया हूँ मैं आपकी
अब तो मुझे अपनाओ
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 26 मई 2018

फिर मिट जाए आवागमन

हे मेरे मन  उतावला मत बन
तज दे चंचलता उच्छृंखलता
भूल जा अपनी तू चतुराई
ले ले अब प्रभु की शरण
जग में वो ही तारनहारा
तनिक तो करले  चिन्तन
घाट  घाट का पानी देखा
मिटी नहीं तृष्णा की रेखा
जग है मिथ्या काहे डोले
वृथा है तेरा ये भ्रमण
वो ही पाले वो ही सम्भाले
करदे जीवन उसके  हवाले
फिर मिट जाए आवागमन
@मीना गुलियानी

हादसा टल गया था

रेल की पटरियों के बीचों बीच
कोई अपनी धुन में जा रहा था
कानों में हैडफोन लगाए हुए था
गाने वो सुनता चला जा रहा था
इतने में गाड़ी ने सीटी बजाई
पर उसके दोनों ही कान बंद थे
फिर भला उसे सुनाई कैसे देता
न ही जान की परवाह थी उसको
लगता था जैसे कोई दीवाना
या किसी शमा का परवाना
रेल की पटरियों पर इंजन
धड़धड़ाता समीप आ रहा था
पटरियाँ भी थर्राने लगी थीं
वो  दीवाना मौत को दावत
दिए चला ही जा रहा था
अकस्मात मैंने उसे पटरी से
 दूर धकेला वो पटरी पार गिरा
गाड़ी धड़धड़ाती हुई निकल गई
मैंने भी चैन की साँस ली और
ईश्वर को धन्यवाद किया वो
भयानक हादसा टल गया था
@मीना गुलियानी


गुरुवार, 24 मई 2018

निंदिया से ख़्वाब तुम्हारे

उतरी फ़लक से पानी की बूँदें
लगा जैसे टकराईं हैं वो तुमसे
उनकी खनक से लगा है ऐसे
बजी हो तेरी पायल कहीं से
बिखरी गगन में प्यारी चाँदनी
फ़िज़ा भी देखो कितनी खिली
लगता चुराई है रोशनी उसने
चुपके चोरी तेरी बिंदिया से
दिलकश नज़ारे कितने प्यारे
चुराए निंदिया से ख़्वाब तुम्हारे
@मीना गुलियानी 

पहिया अनवरत चलता है

जब सुबह कलरव करते
पक्षियों को देखती हूँ
तो अपने मन में सोचती हूँ
कैसे वो घोंसला बनाते हैं
तिनका तिनका बीनकर लाते हैं
अपनी चोंच से फिर सजाते हैं
सुबह दाना चुगने निकलते हैं
तो शाम को घर लौटते हैं
उनके बच्चे अपनी चोंच खोलते हैं
माँ आती है उन्हें खिलाती है
आँधी तूफ़ान जब आते हैं
उनको भी तो डर लगता होगा
न जाने कितने घोंसले तो उस
तेज़ हवा के झोंकों से ही
टूटकर बिखर जाते हैं
मुझे यह देखकर दुःख होता है
उनका परिश्रम व्यर्थ जाता है
भगवान ने कैसा संसार रचा है
उत्पत्ति  विनाश का समन्वय है
जिंदगी कैसी  भी हो जीना पड़ता है
यह सफर तय करना पड़ता है
समय का पहिया अनवरत चलता है
@मीना गुलियानी
























बुधवार, 23 मई 2018

मैं पूरी करना चाहती हूँ

मैं एक मीठी नींद में खोना चाहती हूँ
उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी
चाहती हूँ की कोई मेरा सिर सहलाये
माँ की तरह दिलासा दे, बहलाये
मेरा बचपन तो पीछे छूट गया
पर वो दिन अभी भी याद आते हैं
वो रूठना,मनाना ,हँसना ,खिलखिलाना
मैंने उम्र के हर पड़ाव पर संघर्ष झेला है
चाहती हूँ अब तो कुछ सुकून पा सकूँ
सूरज से उम्मीद की रश्मियों को लेकर
संभालकर रखा है जिसे अब बच्चों पर
उंढ़ेलना चाहती हूँ ताकि  उस उजाले को
 देखकर वो मुझे याद करें मुस्कुराएं
चाहती हूँ कि वो अपनी उम्मीदों के पंख
फैलाकर उन्मुक्त आकाश को छू लें
मुक्त स्वच्छन्द हवा में साँस लें
हर फ़िक्र दिल से निकालें, मुझे सौंप दें
मैं उनके हर संताप को हर लेना चाहती हूँ
बस यही ख़्वाहिश मैं पूरी करना चाहती हूँ
@मीना गुलियानी

सोमवार, 21 मई 2018

तेरा जादू सा चल गया

वक्त हाथों से फिसल गया
दिल का ग़म भी पिघल गया

उसने चालें तो वैसे खूब चलीं
पर इस बार मैं संभल गया

अक्स आईने में मैंने जब देखा
खुद मेरा ही दिल मचल गया

जिंदगी गुज़री है यूँ अपनी
वक्त मुझे जैसे छल गया

आया ज़हन में जो तेरा ख्याल
बर्फ़ सा मैं वहीँ पे जम गया

आने लगा ऐतबार फिर तुझपे
मुझपे तेरा जादू सा चल गया
@मीना गुलियानी 

रविवार, 20 मई 2018

प्रभु दर्शन हो जायेँगे

तुम अपने अंतर्मन की खिड़की खुली रखना
ताकि किसी दुखी मन की पुकार सुन पाओ
जब कभी घुमड़ते हुए सवालात के बादल
तुम्हारे हृदय पटल पर छा जाएँ मन भटकाएं
 मन का दीप जला लेना अन्धकार मिटा लेना
आसमान के तारे भी तुम्हें राह दिखायेंगे
तुम्हारे अंतर्मन में छिपे डर को दूर भगायेंगे
चाहे बिजली कड़के चाहे घनघोर बादल गरजें
पर तुम कभी अपने पथ से विचलित मत होना
तुम्हारे लिए सब बंद दरवाज़े स्वत; खुल जायेंगे
फिर जब नेत्र मूँद लोगे तुम प्रभु दर्शन हो जायेँगे
@मीना गुलियानी

शनिवार, 19 मई 2018

जहाँ तू मेरे साथ हो

मत जाओ दूर इतना कि हम  तुझे ढूँढ़ते ही रहें
मत पास आओ इतना मिटे दिल की प्यास वो

सजा दो चाँदनी को भी तुम अपने ऐसे लिबास में
लगता रहे मुझे कि तेरा खिलता  नूर मेरे पास हो

क्यों बेकरार करती है मुझे ये दिलकशी तेरी
घटती ही नहीं कभी मेरी आँखों की प्यास वो

हो जाए कभी ऐसा है तमन्ना सदा से ही  मेरी
ज़मीं वो फूलों से भर जाए जहाँ तू मेरे साथ हो
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 18 मई 2018

यही बात इससे मैंने सीखी है

ये जिंदगी बहुत अलबेली है
मेरी वो मस्त सहेली है
जब मैं हँस दूँ वो हँसती है
मैं रोऊँ वो  संग में रोती है
मेरा वो  ख़्याल रखती है
अपनी पलकों पे बिठाती है
मेरे संग वो मुस्कुराती है
खुशियों की बौछार करती है
कितने ही मनुहार करती है
खुद ही रूठके मान जाती है
कितना प्यार वो जताती है
बात बात पर झगड़ती है
इतराती धौंस जमाती है
पहले पहेली जैसे लगती थी
अब सहेली जैसी लगती है
ममता की छाँव और प्यार है 
माँ के आँचल सी उसकी गोद है
मेरे थकने पे लोरी गाती है
मुझे अपनी बाहों में सुलाती है
इसका प्यार दुनिया से अनोखा है
कहीं भी फरेब न कोई धोखा है
खुश रहना जो चाहो तो इसे
अपना बना लो या इसके बन जाओ
यही बात इससे मैंने सीखी है
@मीना गुलियानी

गुरुवार, 17 मई 2018

मुझे महसूस करो

मैं तो सिर्फ एक एहसास हूँ
तुम मुझे छू नहीं सकते
तुम मुझे महसूस करो
मैं तुमसे दूर नहीं हूँ
तुम्हारे आसपास ही हूँ
सुबह की धूप में हूँ
सुरमई शाम में हूँ
बारिश की बूंदों में हूँ
तुम्हारी नींद में हूँ
तुम्हारी जागृति में हूँ
तुम्हारे ख्वाबों में हूँ
हवा के झोंकों में हूँ
फूलों की खुशबु में हूँ
तुम सिर्फ अपनी आँखें बंद
करके अन्तर्मन  में देखो
तुम्हारी ही आत्मा हूँ
तुम्हारे ही भीतर  हूँ
तुम्हारे अचेतन मन में
सदा से समाई हूँ पर
दिखाई नहीं देती
मुझे पहचानो और सिर्फ
 मुझे महसूस करो
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 16 मई 2018

तसव्वुर इतना प्यारा हो गया

ज़ख़्म पुराना ताज़ा हो गया
बगावत का इरादा हो गया

नज़रों को यूँ चुराया न करो
अब ये दिल तुम्हारा हो गया

करो रोशन तुम इस जहाँ को
खुद के भीतर उजाला हो गया

सबसे दूर होते जा रहे हो तुम
तसव्वुर इतना प्यारा हो गया
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 15 मई 2018

प्रेम निधि से भर लो

जीवन की कठिन डगर है
पर मत घबराओ इससे
तुम जीत लो अपना मन
पूरे करलो सारे स्वप्न

हर लक्ष्य को पहले साधो
फिर मन को वहीं टिका लो
पंछी की तरह उड़ो तुम
जतन के पंख फैला लो

खुद पर भरोसा करके
दामन खुशियों से भरलो
तुम अपने मन का आँगन
इस प्रेम निधि से भर लो
@मीना गुलियानी 

रविवार, 13 मई 2018

भटकते ही रह जाते हैं

जीवन में न जाने कैसे मुकाम
हमे कहाँ से कहाँ ले आते हैं
कितने ही टेढ़े मेढ़े रास्ते, घुमाव
मंज़िल की राह में आते हैं
जाने कितने ही तूफ़ान दिल में
वो उठाते हैं ,जाने कितने ही
अन्जान मुसाफिर टकराते हैं
कितने संगदिल इंसान हमसफ़र
बन जाते हैं , फिर पलक झपकते
ही वो ओझल  भी हो जाते हैं और
हम उन्हें ढूँढ ही नहीं पाते हैं
उनकी तलाश में हम सिर्फ
भटकते ही रह जाते हैं
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 12 मई 2018

दामन अभी खाली है

रहमत तो तुमने लुटाई है
 दामन अपना अभी खाली है

खुशियाँ ज़माने में बिखरी हैं
करार से दिल अभी खाली है

कहने को तो सब कुछ है यहाँ
 दिल का इक कोना खाली है

मुलाकातें इज़हार भी खत्म हुआ
प्यार से दामन अभी खाली है
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 11 मई 2018

वो बात न कहने पाए

गए परदेस जो तुम
बात न करने पाए
होंठ भी मेरे सिले
खुलके न कहने पाए

छिप गया चाँद मेरा
बादलों ने घेर लिया
बुझ गई शमा रहे
गम के काले साए

दिल के एहसास अधूरे
ही रहे दिल में मेरे
जिसका अरमान था
वो बात न कहने पाए
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 10 मई 2018

कहता इसे कर्मफल

हे मेरे चंचल मन
तू बावला मत बन
क्यों घूमे तू चहुँ ओर
तुझे सूझे न कोई ठोर

रख तू भी ज़रा संयम
यूँ न जला मेरा मन
तू निष्ठुर मत बन
मत बढ़ा तू उलझन

जीवन में सुख और दुःख
आता जाता है प्रतिपल
कोई कहते हैं इसे भाग्य
कोई कहता इसे कर्मफल
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 9 मई 2018

उलझनें सुलझाएँ कैसे हम

जिंदगी ने किस तरह छला मुझे सनम
लब हमारे हैं सिले कुछ कह सके न हम

वक्त ने ढाये सितम चुपचाप हम सहते रहे
तुम भी तो कुछ कर न पाए यूँ ही बैठे रहे
लगता है खामोशियाँ ले लेंगी अपना दम

आ गई है शाम भी साया नज़र आता नहीं
बिन तुम्हारे कुछ भी हमको तो भाता नहीं
टूटी हैं उम्मीदें सारी संभलेंगे  कैसे हम

टूटे हैं सब ख़्वाब मेरे टूटे सपनों के महल
वक्त ने ढाये सितम बाकी न हँसने का पल
जिंदगी की उलझनें  सुलझाएँ कैसे हम
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 8 मई 2018

वह दृष्टिगोचर होगा

हे मेरे मन
तू कब तक यूँ ही
दुनिया में मूर्ख बन
डोलता फिरेगा
ये काया , माया
सब मिट्टी का
ढेला मात्र ही है
सब माटी में ही
मिल जाना है
तो क्यों न उसका
हम ध्यान करें
जो हर पल
अन्तर में
अनहद नाद सा
गुंजायमान होता है
प्रकाश बन मन
आलौकित करता है
उसे ढूँढने के लिए
हृदय के कपाट
खोलने ही पड़ेंगे
अन्तर्चक्षुओं से ही
वह दृष्टिगोचर होगा
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 7 मई 2018

मोती हैं बरसाए

जाने काहे बदरा घिर आए 
बीती सारी यादें वो ले आए

मेरी वीणा सूनी तारें इसकी ढीली
बिना सुर के जिया अकुलाए

आसमान के तारे कहाँ छिप गए सारे
बाती दिल की जले बुझ जाए

कैसे भेजूँ पाती लिख भी न पाती
अखियों ने मोती हैं बरसाए
@मीना गुलियानी 

रविवार, 6 मई 2018

सुबह की प्रतीक्षा करती हूँ

मेरी खिड़की से रोज़ धूप
छनकर बिस्तर से होकर
दीवारों ,सीढ़ियों से चढ़ती
गलियारे में उतरती, रूकती है
मानो अपनी थकान उतारती है
मेरे घर में लगे नीम,फालसे ,
अमरुद,अशोक के पेड़ों को
उनकी पत्तियों को,फूलों को
स्नेह से सहलाती है उनकी
ओसकणों को अपनी किरणों से
और भी चमकीला बना देती है
दोपहर में तेज़ होने पर बादल
घिर आते हैं बूँदाबाँदी होती है
जो धरती की तपन मिटाती हैं
मिट्टी से सौंधी खुशबु आती है
जो मन को पुलकित करती है
फिर सूरज ढलने लगता है
यह धूप भी अपना स्थान
बदल लेती है ,धीरे धीरे
वो खम्बों की आड़ में
पहाड़ो के पीछे,परछाईं
सी बनकर तिरोहित हो जाती है
और मैं उसे दोबारा देखने को
अगली सुबह की प्रतीक्षा करती हूँ
@मीना गुलियानी

शनिवार, 5 मई 2018

परिवर्तित करना होगा

रे मन मत हो निराश
तुझे इस अन्तर के
अन्धकार  को चीरकर
बाहर निकलना होगा
तुझे उगते सूरज जैसे
आगे बढ़ना ही होगा
चाहे दिल तुम्हारा टूटे
चाहे कोई तुमसे रूठे
सब कुछ भुलाकर तुम्हें
नए रिश्तों को गढ़ना होगा
आगे बढ़ोगे तो नए
रास्ते भी खुलने लगेंगे
कई  अपने बेगाने भी
इस पथ में तुमको मिलेंगे  
उगते हुए सूरज को भी
इक दिन ढलना होगा
इस सत्य को पहचानो
जड़ता को चैतन्य में
परिवर्तित करना होगा
@मीना गुलियानी



शुक्रवार, 4 मई 2018

साये को अपनाया हमने

जिंदगी के हालात कुछ ऐसे हुए
शीशे के महल बनाए हमने

दिल नाजुक मोम सा है हमारा
तेज़ रोशनी से छिपाया हमने

दुनिया को ख़ुशी दिखाने को
चेहरे पे नकाब लगाए हमने

जब कोई हमदर्द करीब न पाया
अपने साये को अपनाया हमने
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 3 मई 2018

कराहें और सिसकियाँ

दिल में जाने क्यों रहतीं उदासियाँ
अजीब सी होती रहती सरगोशियाँ

वीरान सी सुबह देती है रोज़ दस्तक
दर्द के गुल छाई ग़म की बदलियाँ

चेहरा बयां करता है दिल का फ़साना
सुनाई देती हैं  कराहें और सिसकियाँ 
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 2 मई 2018

शूल हम उठाने लगे हैं

बिन पिए ही कदम लड़खड़ाने लगे हैं
जिंदगी की राह में डगमगाने लगे हैं

कुछ दिन पहले तो आई थीं बहारें
ख़ुशी ही ख़ुशी की  बरसी थीं फुहारें
गुलिस्तां के फूल मुरझाने लगे हैं

शायद मुझमें ही कोई कमी है 
जो तू मेरा होके भी मेरा नहीं है
दिल तसल्ली से बहलाने लगे हैं

सोचा था आएगा  रास्ते का भूला
पर तू तो इधर का रास्ता ही भूला
रास्ते के शूल हम उठाने लगे हैं
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 1 मई 2018

चुनरिया पहन धरती मुस्काई

हुआ आगमन ग्रीष्म ऋतु का
आम्रमंजरी ने भी ली अंगड़ाई
नीम के वृक्ष ने निंबौली बिखराई
सुबह सूर्योदय से पूर्व की शीतल
बयार सबके मन को अति भाई
दोपहर में गर्मी ने तपन बढ़ाई
प्यास की मात्रा में हुई अधिकाई
गन्ने का रस पीकर तपन बुझाई
घरों में ए सी, कूलर ने होड़ मचाई
चाय ,कॉफ़ी से अच्छी लगे ठण्डाई
चिड़िया ,मैना भी लगी चहकने
जब मिट्टी से सौंधी खुशबु आई
नन्ही गिलहरी भी फुदकने लगी
पेड़ की टहनी के ऊपर चढ़ने लगी
तीतर ,कबूतर दाना चुगने लगे
कुत्ते ,बिल्ली रोटी ले भगने लगे
खेतों में होने लगी फसलों की कटाई
धानी चुनरिया पहन धरती मुस्काई
@मीना गुलियानी