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रविवार, 13 मई 2018

भटकते ही रह जाते हैं

जीवन में न जाने कैसे मुकाम
हमे कहाँ से कहाँ ले आते हैं
कितने ही टेढ़े मेढ़े रास्ते, घुमाव
मंज़िल की राह में आते हैं
जाने कितने ही तूफ़ान दिल में
वो उठाते हैं ,जाने कितने ही
अन्जान मुसाफिर टकराते हैं
कितने संगदिल इंसान हमसफ़र
बन जाते हैं , फिर पलक झपकते
ही वो ओझल  भी हो जाते हैं और
हम उन्हें ढूँढ ही नहीं पाते हैं
उनकी तलाश में हम सिर्फ
भटकते ही रह जाते हैं
@मीना गुलियानी 

2 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन में hmare jb aadrsh khtm fail ho jate hainते हैं
    hm apne raste se bhtk jaate hain
    मंज़िल hmko milti nhin
    Hm niraash ho jaate hain
    कितने praye इंसान हमसफ़र
    बन जाते हैं ,
    apna farj nibha kr gaayb ho jate hain
    Voh munh se kuch nhin kehte
    pr unke krm sb kh jaate hain
    voh vada nhin krte
    pr vada nibha jaate hain-ashok

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