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बुधवार, 9 मई 2018

उलझनें सुलझाएँ कैसे हम

जिंदगी ने किस तरह छला मुझे सनम
लब हमारे हैं सिले कुछ कह सके न हम

वक्त ने ढाये सितम चुपचाप हम सहते रहे
तुम भी तो कुछ कर न पाए यूँ ही बैठे रहे
लगता है खामोशियाँ ले लेंगी अपना दम

आ गई है शाम भी साया नज़र आता नहीं
बिन तुम्हारे कुछ भी हमको तो भाता नहीं
टूटी हैं उम्मीदें सारी संभलेंगे  कैसे हम

टूटे हैं सब ख़्वाब मेरे टूटे सपनों के महल
वक्त ने ढाये सितम बाकी न हँसने का पल
जिंदगी की उलझनें  सुलझाएँ कैसे हम
@मीना गुलियानी

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