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शनिवार, 26 मई 2018

फिर मिट जाए आवागमन

हे मेरे मन  उतावला मत बन
तज दे चंचलता उच्छृंखलता
भूल जा अपनी तू चतुराई
ले ले अब प्रभु की शरण
जग में वो ही तारनहारा
तनिक तो करले  चिन्तन
घाट  घाट का पानी देखा
मिटी नहीं तृष्णा की रेखा
जग है मिथ्या काहे डोले
वृथा है तेरा ये भ्रमण
वो ही पाले वो ही सम्भाले
करदे जीवन उसके  हवाले
फिर मिट जाए आवागमन
@मीना गुलियानी

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