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शुक्रवार, 18 मई 2018

यही बात इससे मैंने सीखी है

ये जिंदगी बहुत अलबेली है
मेरी वो मस्त सहेली है
जब मैं हँस दूँ वो हँसती है
मैं रोऊँ वो  संग में रोती है
मेरा वो  ख़्याल रखती है
अपनी पलकों पे बिठाती है
मेरे संग वो मुस्कुराती है
खुशियों की बौछार करती है
कितने ही मनुहार करती है
खुद ही रूठके मान जाती है
कितना प्यार वो जताती है
बात बात पर झगड़ती है
इतराती धौंस जमाती है
पहले पहेली जैसे लगती थी
अब सहेली जैसी लगती है
ममता की छाँव और प्यार है 
माँ के आँचल सी उसकी गोद है
मेरे थकने पे लोरी गाती है
मुझे अपनी बाहों में सुलाती है
इसका प्यार दुनिया से अनोखा है
कहीं भी फरेब न कोई धोखा है
खुश रहना जो चाहो तो इसे
अपना बना लो या इसके बन जाओ
यही बात इससे मैंने सीखी है
@मीना गुलियानी

1 टिप्पणी:

  1. सच में सब सीखते हैं पर ये नहीं सीखते ...
    अपनी जिन्दगी से सिर्फ शिकायत करते हैं कभी इसी तरह दोस्ती करके देखें....
    बहुत सुन्दर सीख देती रचना
    वाह!!!

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