रे मन मत हो निराश
तुझे इस अन्तर के
अन्धकार को चीरकर
बाहर निकलना होगा
तुझे उगते सूरज जैसे
आगे बढ़ना ही होगा
चाहे दिल तुम्हारा टूटे
चाहे कोई तुमसे रूठे
सब कुछ भुलाकर तुम्हें
नए रिश्तों को गढ़ना होगा
आगे बढ़ोगे तो नए
रास्ते भी खुलने लगेंगे
कई अपने बेगाने भी
इस पथ में तुमको मिलेंगे
उगते हुए सूरज को भी
इक दिन ढलना होगा
इस सत्य को पहचानो
जड़ता को चैतन्य में
परिवर्तित करना होगा
@मीना गुलियानी
तुझे इस अन्तर के
अन्धकार को चीरकर
बाहर निकलना होगा
तुझे उगते सूरज जैसे
आगे बढ़ना ही होगा
चाहे दिल तुम्हारा टूटे
चाहे कोई तुमसे रूठे
सब कुछ भुलाकर तुम्हें
नए रिश्तों को गढ़ना होगा
आगे बढ़ोगे तो नए
रास्ते भी खुलने लगेंगे
कई अपने बेगाने भी
इस पथ में तुमको मिलेंगे
उगते हुए सूरज को भी
इक दिन ढलना होगा
इस सत्य को पहचानो
जड़ता को चैतन्य में
परिवर्तित करना होगा
@मीना गुलियानी
वाह सुंदर कर्म प्रधान आशावादी रचना ।
जवाब देंहटाएंVery nice....True
जवाब देंहटाएंbeautiful love this
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