कभी कभी भीड़ में भी मन
नितांत अकेला ही होता है
मन के कोने में छिपा दर्द
अचानक जाग सा उठता है
रिस रिस कर नस नस में
धड़कन बन बहता रहता है
कभी तुम मुझे भी पहचानो
हर पल तुम्हारी आवाज़ को
मैं हमेशा तरसता रहता हूँ
@मीना गुलियानी
नितांत अकेला ही होता है
मन के कोने में छिपा दर्द
अचानक जाग सा उठता है
रिस रिस कर नस नस में
धड़कन बन बहता रहता है
कभी तुम मुझे भी पहचानो
हर पल तुम्हारी आवाज़ को
मैं हमेशा तरसता रहता हूँ
@मीना गुलियानी
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