रेलवे की पुलिया के नीचे कुत्तों का
जमावड़ा लगा रहता था। हम लोग
वहाँ खाना बाद टहलने जाते थे
साथ में घर में बची खुची रोटी भी
ले जाते थे। हमने देखा था एक फ़टे
कपड़ों में भिखारी को यदा कदा वहीँ
खड़ा मिल जाता था। जैसे ही हम
रोटी कुत्तों के आगे डालते थे। वो
सबके सब उस पर झपट पड़ते थे रोज
तो हम रोटी डालकर वापिस लौट
जाते थे। पर एक दिन हम वहीँ रुक
गए थे की वे कैसे फ़टाफ़ट खाते हैं
तभी हमें यह देखकर हैरानी हुई क
वो भिखारी उन कुत्तों को पत्थर से
भगाकर रोटी उठाकर खा रहा था।
हमें उस पर बहुत क्षोभ हुआ दिल
पसीज गया। उस दिन के बाद से ही
हम दो रोटी सब्जी या अचार सहित
उसके लिए भी ले जाने लगे। जिसे
देखते ही उसकी आँखें चमक उठीं।
हमे भी आत्मसंतोष हुआ कि कुछ
नेक कार्य हमने भी किया।
@मीना गुलियानी
जमावड़ा लगा रहता था। हम लोग
वहाँ खाना बाद टहलने जाते थे
साथ में घर में बची खुची रोटी भी
ले जाते थे। हमने देखा था एक फ़टे
कपड़ों में भिखारी को यदा कदा वहीँ
खड़ा मिल जाता था। जैसे ही हम
रोटी कुत्तों के आगे डालते थे। वो
सबके सब उस पर झपट पड़ते थे रोज
तो हम रोटी डालकर वापिस लौट
जाते थे। पर एक दिन हम वहीँ रुक
गए थे की वे कैसे फ़टाफ़ट खाते हैं
तभी हमें यह देखकर हैरानी हुई क
वो भिखारी उन कुत्तों को पत्थर से
भगाकर रोटी उठाकर खा रहा था।
हमें उस पर बहुत क्षोभ हुआ दिल
पसीज गया। उस दिन के बाद से ही
हम दो रोटी सब्जी या अचार सहित
उसके लिए भी ले जाने लगे। जिसे
देखते ही उसकी आँखें चमक उठीं।
हमे भी आत्मसंतोष हुआ कि कुछ
नेक कार्य हमने भी किया।
@मीना गुलियानी
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