कैसा छाया हृदय में मेरे गहन अँधियारा
@मीना गुलियानी
स्वार्थ के अवगुन्ठनों से भरा संसार सारा
शक की दीवारों ने जकड़ा है मुझे
लोग चलते देखकर मुँह को फेरते
इस गगन के सूर्य चन्द्र की क्या कहें
मुझको तकता नहीँ कोई भी अब तारा
मेरी कल्पना भी अथाह बन बैठी है आज
जलधि की लहर घेरे मेरी देह को आज
सोचने पर भी मिलता नहीँ कोई किनारा
तुम ही अपनी प्रीत से करदो उजाले
सम्भले न मुझसे मेरा दिल अब सम्भाले
मैं तो खुद अपनी सोच से हूँ आज हारा
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