सारी रात मेघ बरसता रहा
पर मन की बगिया रीती रही
दिल की कलियां खिल न पाईं
बगिया प्रेम पाने को तरसती रही
सूर्य की किरणें आईं धरा पर
किन्तु कुमुदिनी खिल न सकी
चन्द्र का डोला उतरा गगन से
धरा फिर भी उससे अछूती ही रही
प्रेम का स्नेहिल स्पर्श उसको न मिला
उसका मन रहा बुझा बुझा अधखिला
भँवरे फूलों पे आके मंडराने लगे
मस्ती भरे गीत उनको सुनाने लगे
कलियां फिर भी उदासी लिए मन में
सिमटी रहीं पूरी खिल न सकी
प्रेम का ज्वार उन पर उतर सा गया
मौसम आया था जो वो गुज़र सा गया
गीत मौसम ने गाये सुहाने मगर
फूलों को न भाये मगर उनके सुर
वो गम के आँसू पिए ओठों को सिए
बूँदे आँसू की ओस बनके बिखरती रही
@मीना गुलियानी
पर मन की बगिया रीती रही
दिल की कलियां खिल न पाईं
बगिया प्रेम पाने को तरसती रही
सूर्य की किरणें आईं धरा पर
किन्तु कुमुदिनी खिल न सकी
चन्द्र का डोला उतरा गगन से
धरा फिर भी उससे अछूती ही रही
प्रेम का स्नेहिल स्पर्श उसको न मिला
उसका मन रहा बुझा बुझा अधखिला
भँवरे फूलों पे आके मंडराने लगे
मस्ती भरे गीत उनको सुनाने लगे
कलियां फिर भी उदासी लिए मन में
सिमटी रहीं पूरी खिल न सकी
प्रेम का ज्वार उन पर उतर सा गया
मौसम आया था जो वो गुज़र सा गया
गीत मौसम ने गाये सुहाने मगर
फूलों को न भाये मगर उनके सुर
वो गम के आँसू पिए ओठों को सिए
बूँदे आँसू की ओस बनके बिखरती रही
@मीना गुलियानी
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