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रविवार, 14 अक्टूबर 2018

माता की भेंट -6 -जो उसके रंग में ढलते हैं

तेरे द्वार पे आने वालों के दुखड़े माँ पल में टलते हैं 
लाखों दुखियारे लोगों के इक पल में भाग्य बदलते हैं 

ले इच्छा जो भी आता है खाली न दर से जाता है 
हर एक सवाली का पल में अरमां पूरा हो जाता है 
बिगड़ी तकदीरें बनती हैं खुशियों के चमन खिलते हैं 

लौटा न दर से सवाली है ये माता शेरों वाली है 
दे मुक्ति का वरदान यही हर विपदा हरने वाली है 
ये सूरज चंदा और तारे उसके कहने से चलते हैं 

हर जीव में उसकी ज्योति है हर सीप बनाए मोती है 
खुशियों से झोली भर जाए कृपा जो उसकी होती है 
माँ करती उसकी रखवाली जो उसके रंग में ढलते हैं 
@मीना गुलियानी 

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