आँखों को हाथों से यूँ ही न मलिए
पग न फिसल जाए ज़रा संभलिए
है रास्ता बड़ा टेढ़ा मेढ़ा यहाँ का
सुझाई न देता है पथ में धुआँ सा
कदम ऐसे बहके न लहरा के चलिए
बहुत ठण्डी ठण्डी हवाएँ यहाँ हैं
फ़िज़ा का भी आलम मस्त यहाँ है
खा जाएँ धोखा न इतरा के चलिए
अभी तुमने मौसम को देखा कहाँ है
कभी आये पतझड़ कभी खुशनुमां है
बदल जाए रुत यूँ मुस्कुरा के चलिए
@मीना गुलियानी
पग न फिसल जाए ज़रा संभलिए
है रास्ता बड़ा टेढ़ा मेढ़ा यहाँ का
सुझाई न देता है पथ में धुआँ सा
कदम ऐसे बहके न लहरा के चलिए
बहुत ठण्डी ठण्डी हवाएँ यहाँ हैं
फ़िज़ा का भी आलम मस्त यहाँ है
खा जाएँ धोखा न इतरा के चलिए
अभी तुमने मौसम को देखा कहाँ है
कभी आये पतझड़ कभी खुशनुमां है
बदल जाए रुत यूँ मुस्कुरा के चलिए
@मीना गुलियानी
बेहतरीन भावों से सजी रचना 🙏
जवाब देंहटाएंभव पूर्ण उत्तम रचना ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 4 अक्टूबर 2018 को प्रकाशनार्थ 1175 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
अभी तुमने मौसम को देखा कहाँ है
जवाब देंहटाएंकभी आये पतझड़ कभी खुशनुमां है
बदल जाए रुत यूँ मुस्कुरा के चलिए....बहुत सुन्दर
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....