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बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

गज़ब दिल पे ढाने लगी है

चाँद सरगोशियाँ कर रहा है
जिंदगी मुस्कुराने लगी है
उसके नाज़ुक लबों पे फिर से
गुनगुनाहट सी आने लगी है

कैसा आलम नशीला है छाया
बन गया अपना जो था पराया
फिर से सजने लगे आज गुंचे
हर कली खिलखिलाने लगी है

उनके हाथों में मेहँदी लगी है
सुर्ख जोड़े में दुल्हन सजी है
पायल की खनक उनकी देखो
बोल मीठे सुनाने लगी है

उफ़ ये शर्माता नाज़ुक सा चेहरा
उसपे लहराती जुल्फ़ों का पहरा
उठती गिरती पलकों की चिलमन
क्या गज़ब दिल पे ढाने लगी है
@मीना गुलियानी

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