इक बोझ सा सीने में छुपाए बैठा हूँ
सुलगते आग के शोले दबाए बैठा हूँ
गुज़रते जा रहे कितने कारवां जिंदगी के
चंद लम्हों के लिए खुद को बचाए बैठा हूँ
दिल की हसरतें मुँह अपना खोल देती हैं
मैं उसे भी अपनी नज़रें चुराए बैठा हूँ
रूठने वाले तेरी सलामती की दुआ करता हूँ
उसके सज़दे में अपना सर झुकाए बैठा हूँ
@मीना गुलियानी
सुलगते आग के शोले दबाए बैठा हूँ
गुज़रते जा रहे कितने कारवां जिंदगी के
चंद लम्हों के लिए खुद को बचाए बैठा हूँ
दिल की हसरतें मुँह अपना खोल देती हैं
मैं उसे भी अपनी नज़रें चुराए बैठा हूँ
रूठने वाले तेरी सलामती की दुआ करता हूँ
उसके सज़दे में अपना सर झुकाए बैठा हूँ
@मीना गुलियानी
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना 🙏
जवाब देंहटाएंThanks for ur beautiful comments
जवाब देंहटाएं