दीनू एक मजदूर था वो अपनी बस्ती में अपने परिवार के साथ रहता था। उसका मित्र राम उसका पड़ौसी था वो भी दीनू के साथ ही मजदूरी करता था वो भी अपने परिवार के साथ ही रहता था। गाँव में उन दोनों के माता पिता रहते थे। वहाँ उनका खेत एक साहूकार के पास गिरवी पड़ा था और वो अपने ही उस गिरवी खेत में साहूकार के कहने पर उनके पिता खेती बाड़ी का काम करते थे। इन दिनों तो खेतों की फसल असमय बाऱिश और ओले पड़ने से खराब हो गई थी। साहूकार ने उनके पिता को मजदूरी भी नहीं दी थी। यह कहकर मना कर दिया कि फसल बेकार हो गई तो पैसे कहाँ से लायें।
दीनू और राम तो गाँव से निकलकर शहर में जहाँ बिल्डिंग बन रही थीं वहीँ पर एक छप्पर डालकर पत्नी और बच्चों के साथ रहकर दिहाड़ी पर मजदूरी कर रहे थे। लॉकडाउन की वजह से ठेकेदार ने कई मजदूरों को बोल दिया था अब तुम अपने गाँव चले जाओ। अभी तो बजरी सीमेंट आनी बंद हैं इसलिए काम नहीं होगा। अब वो लोग गाँव कैसे जाएँ न तो उनके पास पैसे थे न ही उनके पिता के पास पैसे थे कि वो गाँव जाते ना कोई अन्य काम था। उनके कुछ मित्रों ने बताया कि दूसरी जगह कहीं जुगाड़ करते हैं। खाली बैठकर भी कोई कुछ नहीं देगा। भूखे प्यासे तो थे ही अब सामने एक देसी दारु का ठेका नज़र आया तो दोनों ने एक एक थैली ले ली थोड़ी नमकीन भी ली और पीने लगे। अब धीरे धीरेा नशा छाने लगा। सड़क पर कदम भी बहकने लगे।
फिर उनको अपने बीबी बच्चों का भी ध्यान आया कि एक डबलरोटी ले लेते हैं साथ में थोड़ी चाय से काम चला लेंगे। डबलरोटी लेने के लिए जेब में हाथ डाला तो उसमें कुछ भी पैसा बचा नहीं था। उन्होंने खूब उस दुकानदार की मिन्नत करी पर वो तो टस से मस नहीं हुआ। नशे में तो थे ही वो गाली गलौज़ उससे करने लगे इस पर दुकानदार ने एक थप्पड़ मार दिया। उनसे ये सहन नहीं हुआ और उस दुकानदार के पेट में चाकू घुसेड़ दिया। जिससे वो तो घटनास्थल पर ही मर गया। उसके कत्ल के बाद लोगों ने पुलिस बुलाई जो उनको थाने में पकड़कर ले गई। देखा जाए तो यह कसूर उस भूख का है जिसे मिटाने के लिए उनको हत्या तक का जुर्म करना पड़ा। इसी तरह लॉकडाउन में देखा गया है कि किराना स्टोर वालों ने सब्जी के ठेले वालों ने भी रेट दुगने से भी ज्यादा बढ़ा रखे हैं। यह मानव मूल्यों के सिद्धांत की भी हत्या के समान ही अपराध है। कोई गरीब कहाँ से इतने पैसे लाकर सामान लेगा। उनके बच्चे बीमार हो जाते हैं तो दवा खरीदने तक के पैसे भी नहीं होते। कुछ लोग तो जाति धर्म को ज्यादा महत्व देते हैं इसलिए भी उनकी सहायता करने से कतराते हैं। समाज की इन कुरीतियों से उभरने की जरूरत है। नहीं तो अपराध होते ही रहेंगे की भूख गरीबी से लोग मरते भी रहेंगे।
@मीना गुलियानी
दीनू और राम तो गाँव से निकलकर शहर में जहाँ बिल्डिंग बन रही थीं वहीँ पर एक छप्पर डालकर पत्नी और बच्चों के साथ रहकर दिहाड़ी पर मजदूरी कर रहे थे। लॉकडाउन की वजह से ठेकेदार ने कई मजदूरों को बोल दिया था अब तुम अपने गाँव चले जाओ। अभी तो बजरी सीमेंट आनी बंद हैं इसलिए काम नहीं होगा। अब वो लोग गाँव कैसे जाएँ न तो उनके पास पैसे थे न ही उनके पिता के पास पैसे थे कि वो गाँव जाते ना कोई अन्य काम था। उनके कुछ मित्रों ने बताया कि दूसरी जगह कहीं जुगाड़ करते हैं। खाली बैठकर भी कोई कुछ नहीं देगा। भूखे प्यासे तो थे ही अब सामने एक देसी दारु का ठेका नज़र आया तो दोनों ने एक एक थैली ले ली थोड़ी नमकीन भी ली और पीने लगे। अब धीरे धीरेा नशा छाने लगा। सड़क पर कदम भी बहकने लगे।
फिर उनको अपने बीबी बच्चों का भी ध्यान आया कि एक डबलरोटी ले लेते हैं साथ में थोड़ी चाय से काम चला लेंगे। डबलरोटी लेने के लिए जेब में हाथ डाला तो उसमें कुछ भी पैसा बचा नहीं था। उन्होंने खूब उस दुकानदार की मिन्नत करी पर वो तो टस से मस नहीं हुआ। नशे में तो थे ही वो गाली गलौज़ उससे करने लगे इस पर दुकानदार ने एक थप्पड़ मार दिया। उनसे ये सहन नहीं हुआ और उस दुकानदार के पेट में चाकू घुसेड़ दिया। जिससे वो तो घटनास्थल पर ही मर गया। उसके कत्ल के बाद लोगों ने पुलिस बुलाई जो उनको थाने में पकड़कर ले गई। देखा जाए तो यह कसूर उस भूख का है जिसे मिटाने के लिए उनको हत्या तक का जुर्म करना पड़ा। इसी तरह लॉकडाउन में देखा गया है कि किराना स्टोर वालों ने सब्जी के ठेले वालों ने भी रेट दुगने से भी ज्यादा बढ़ा रखे हैं। यह मानव मूल्यों के सिद्धांत की भी हत्या के समान ही अपराध है। कोई गरीब कहाँ से इतने पैसे लाकर सामान लेगा। उनके बच्चे बीमार हो जाते हैं तो दवा खरीदने तक के पैसे भी नहीं होते। कुछ लोग तो जाति धर्म को ज्यादा महत्व देते हैं इसलिए भी उनकी सहायता करने से कतराते हैं। समाज की इन कुरीतियों से उभरने की जरूरत है। नहीं तो अपराध होते ही रहेंगे की भूख गरीबी से लोग मरते भी रहेंगे।
@मीना गुलियानी
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