रामू अपनी टपरी वाले ढाबे में चाय बेचता था। चाय तो वो कुल्हड़ में ही सबको पिलाता था। बस एक बार जो उसके ढाबे में चाय पीने आ गया तो समझ लो हमेशा के लिए उसका मुरीद हो गया। चाय तो हम सब लोग भी बनाते हैं और पीते हैं लेकिन उसके हाथों में न जाने क्या जादू भरा था कि सब उसकी चाय के दीवाने थे। रोज़ ही सुबह ढाबा खुलते ही चाय पीने वालों की लाईन लग जाती थी। एक तो चाय दूसरा उसका मीठा बर्ताव सच में
जैसे मुँह में मिश्री घुली हो सोने में सुहागा जैसा काम करता था। चाय चाहे वो एक कुल्हड़ 10 रूपये में देता था पर पीने वाले का पैसा वसूल हो जाता था।
सुबह सवेरे आकर पहले वो झाड़ू लगाता फिर हाथ मुँह धोकर एक कप चाय बनाकर अपने ठाकुर जी को भोग लगाता था। उसके बाद आम जनता के लिए चाय की बिक्री शुरू हो जाती थी। उसकी चाय पास की दुकानों में, बैंक में भी जाती थी। कुछ लोग तो उसके महीने भर के ग्राहक थे वो उनकी डायरी में चाय दर्ज करता जाता था। उससे हिसाब में कभी कोई भूल चूक नहीं होती थी। सब लोग उसकी ईमानदारी के कायल थे। सुबह वो चाय के साथ उस दिन की खबरें भी सुनाता जाता था। चाय पीने वाले का उसकी लच्छेदार बातों से रस दुगना हो जाता था। एक दिन के लिए उसको जयपुर से बाहर किसी की शादी में एक दिन के लिए जाना पड़ गया तो दूसरे दिन सब लोगों ने उससे कहा भाई तुम तो कहीं मत जाया करो। तुम्हारी चाय पीकर ही तो हम फ्रैश दिखते हैं नहीं तो सारा दिन आलस्य में ही बीतता है।
रामू बड़े प्यार से सबके कुल्हड़ में मुस्कुराते हुए चाय डालते हुए बोलता जाता है बाऊजी ये तो आपका प्यार है वरना हम तो इस काबिल कहाँ हैं। रामू की यही तो भोली अदाएँ सबके मन को भाती हैं। सभी के मुँह से उसकी चाय पीने के लिए आर्डर देते समय यही निकलता है रामू भाई - भरदे चाय का कुल्हड़।
@मीना गुलियानी
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