कुछ वर्ष पूर्व मैंने एक किटी नाम की बिल्ली पाली थी। मेरे घर में एक शेरू नाम का कुत्ता भी था। लोग तो कहते हैं कि बिल्ली और कुत्ते की आपस में दुश्मनी होती है। ये कभी भी दोस्त नहीं बन सकते हैं लेकिन मेरे घर में ऐसा नहीं था। दोनों बहुत प्यार से रहते थे किटी थोड़ी ज्यादा ही शैतानी करती थी। शेरू की खाने की प्लेट कभी अपने पास खींच लेती थी फिर धीरे धीरे उसका खाना भी चट कर जाती थी। शेरू उसे डराता तो वो भी उसे जोर से म्याऊँ बोलकर डराती कभी पंजा मारती थी। दूध और ब्रैड बिस्कुट चाव से खाती थी। कोई मेहमान आता था तो उसके कान खड़े हो जाते थे और गुर्राती थी। उससे हम समझे जाते थे कोई आया है। वो हैलो कहना सीख गई थी। शेक हैंड करती थी टाटा कहना भी आता था। मुझे दूर से आते देखकर उसकी पूँछ हिलती थी ऐसे ही शेरू भी मेरा पर्स अपने गले में लटका लेता था। दोनों ही मुझे गली से घर तक लेने व छोड़ने आते थे। जब कभी उसे पॉटी आती थी तो मेरे कपड़ों को मुँह से दबाकर खींचती थी यह कहने के लिए कि बाहर ले जाओ। घर को कभी गंदा नहीं करती थी।
शेरू और किटी दोनों मस्ती से बॉल से खेलते थे। रोज़ टब में नहाते थे उस टब में सेवलॉन की कुछ बूँदे मैं डाल देती थी। जब वो नहा लेते तो टॉवल से पोंछ देती थी। फिर खाना खाते और कभी टी वी चलता था तो वो भी देखते थे। ऐसा लगता था जैसे सब समझ में आ रहा है। शाम को थोड़ी देर उनको बाहर पार्क में घुमा लाती थी।बाहर जाकर वो किसी से डरती नहीं थी। मस्ती से चलती रहती थी। बच्चों को देखकर खुश होती थी। उनसे खेलती थी। वो भी प्यार से उसके सिर और गले को सहला देते तो वह उनकी गोदी में लेट जाती थी। उसे सिर सहलाने में अच्छा लगता था। उसे देखकर लगता था जैसे खूब बातें वो कहना चाहती है। उसकी भाषा मूक थी पर मुझे समझ में आ जाती थी। उसने चार और बिल्लियों को जन्म भी दिया तब वो उनके पास रहकर रखवाली करती थी। कोई उन्हें छेड़ता तो मेरी तरफ देखकर गुहार लगाती कि उसे मना करो। कभी अपना मुँह मेरे कानों के पास लाती लगता था खूब बातें कर रही है लेकिन हर कोई उसकी बातें समझ न पाता था। फिर वो असमय ही चल बसी पर उसकी छवि हमारे दिल में अंकित है। उसकी मासूमियत भर चेहरा याद आता है। लगता है वो टाटा कर रही है।
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें