मुझे आज भी अपने पुराने वाले मकान की छत याद आती है जहाँ सर्दियों के दिनों में दिन भर छत पर बैठकर
हम लोग चटाई बिछा लेते थे और सभी धूप सेका करते थे। घर की महिलाएँ ह्री सब्जियाँ जैसे कि साग , धनिया,पोदीना ,मेथी आदि साफ करने के लिए धूप में ही लेकर बैठ जाती थीं। एक पंथ दो काज हो जाते थे। चटनी बनाने के लिए धनिया पोदीना तैयार मिलता था। साग बनाने के लिए साग तैयार मिलता था। मेथी भी साफ़ करके काट दी जाती थी ताकि समय के अनुसार बना सकें। कभी कभी तो मटर भी छील लेते थे जरूरत के अनुसार बना लेते थे।
बच्चे लोग छत पर शाम को पतंग उड़ाते थे। छुट्टी के दिन ज्यादा पतंगें उड़ती थीं क्योंकि पड़ोस के और भी बच्चे हमारी छत पर पतंग उड़ाने आ जाते थे। इसका ये भी कारण था कि हमारी छत ऊँची थी। ऊपर से करीब पाँच किलो मीटर तक दी दूरी की बिल्डिंग हमारी छत से देखी जा सकती थीं। जब हम छोटे थे तो जब हवाई जहाज छत से ऊपर उड़कर जाता था हम लोग उसे टा टा करते थे। अपने स्कूल का काम भी छत पर आकर निपटा लेते थे। सभी पड़ोस के लोग छत पर बैठे बैठे एक दूसरे से आवाज़ लगाकर बाते कर लेते थे। औरतें अक्सर ऊन सलाईयाँ लेकर स्वैटर बुना करती थीं। गर्मियों की रातें भी ठण्डक से भरी होती थीं। रात को ठण्डी हवा में पंखे या कूलर के बिना ही अच्छी नींद आ जाती थी। बारिश के दिनों में छत पर बारिश में नहाने का आनन्द ही अलग होता था। कई युवक युवतियाँ आपस में प्रेम के पेच भी चुपके से आँखे चार करके लगा लेते थे।
इस प्रकार छत का आनन्द क्या होता है यह वो ही बता सकता है जिसने इसका रसास्वादन किया हो बाकी अन्य लोग तो ऐसे बता सकते थे जैसे बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद और गूंगा क्या बताये गुड़ का स्वाद। हमने तो छत का पूरा पूरा लुत्फ़ उठाया हुआ है। आजकल तो सभी लोग अपना अपना मकान नई कालोनियों में बना चुके हैं उनमे वो रौनक नहीं है जो उन पुराने घरों की छत पर हुआ करती थी। आज भी उन छतों के आनन्द को हमारा दिल तरसता है जब मकर सक्रांति के रोज़ हम पतंगें उड़ाते थे और हमारे लिए गर्म पकौड़े छत पर भिजवा दिए जाते थे। कैसे भूल पायेंगे हम वो पल जो उन पुराने घर की छतों पर हमने गुज़ारे।
@मीना गुलियानी
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