सुमित तुम्हें कुछ याद है कि कब हमने तुम्हारे साथ आखिरी बार चाय पी थी। अब तो करीब करीब महीना होने को आया है तुम्हें देखने को भी हम तो तरस गए चाय पीना तो दूर की बात हो गई। उस दिन की चाय के बाद से ही लॉकडाउन शुरू हो गया था। हमारा तो इस करोना ने मन का सुकून भी छीन लिया। एक तुम ही थे जिससे हम दिल की सब बातें कर लिया करते थे अब तो सब कुछ दरकिनार हो गया। सिर्फ फोन पर ही बात होती है वो भी कभी कोई और उठा लेता है या तुम कहीं और व्यस्त होते हो तो ढंग से बात भी नहीं कर पाते। हम तो बात करने को, देखने को, मिलने को तरस कर रह गए।
यह तो ईश्वर ही जाने जबसे ये महामारी आई है सब लोगों का जीना दूभर है। लोगों के धंधे चौपट हो गए। दिहाड़ी के मजदूर बेकार हो गए। कई तो पलायन कर गए। मैं तो बाहर बालकनी में बैठे बैठे शाम की प्रतीक्षा करती हूँ क्योंकि कभी कभी शाम को तुम अपने हाथ में चाय का कप उठाये हुए अपनी बालकनी में दिख जाते हो। हर बार तो ऐसा करना भी सम्भव नहीं हो पाता। घर के बाकी लोग भी जब तुम्हारी ओर मेरी नज़रें होंगी तो क्या सोचेंगे। यही सोचकर कई बार देखकर भी अनदेखा कर देती हूँ। पता नहीं कब तुम हमेशा के लिए मुझे अपना बनाकर अपने घर ले जाओगे। उस दिन का भी मुझे इंतज़ार है।
मुझे तो वो पुराने लम्हेँ आज भी याद हैं जब हम दोनों आफिस से लौटते हुए खूब लम्बा राउन्ड लेते हुए कभी गार्डन तो कभी चौपाटी पे कुल्फी खाते हुए आते थे। गार्डन में भी कुछ देर बैठकर दुःख सुख की बातें करते थे।
तुम मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर न जाने क्या क्या वादे करते थे। क्या तुम्हें वो सब याद हैं या भूल गए। हम कितनी बार तो ऑफिस से छुट्टी लेकर फिल्म देखने भी गए थे। एक बार तो आमेर का किला देखने भी गए थे। तुम्हारा साथ पाकर तो हम दूसरी दुनिया में पहुँच जाया करते थे। अब तो सिर्फ यादेँ ही मेरे जीने का सहारा बन चुकी हैं। मेरे कान ये सुनने को भी तरस गए हैं रितु तुम जल्दी से मेरे घर आ जाओ मैं तुम्हारा चाय पर इंतज़ार कर रहा हूँ। अब तो बस उस दिन का इंतज़ार है कि लॉकडाउन खत्म हो और हम दुबारा से मिलकर चाय पियें।
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें