रामू एक होनहार लड़का था पर गरीब परिवार का था। उसे खेलों में रूचि थी। वो लम्बी दौड़ में हिस्सा लेना चाहता था लेकिन उसके पास दौड़ लगाने के लिए जूते नहीं थे। एक ही जोड़ी जूते थे जो पता नहीं कितनी बार उसके पापा ने मोची से मरम्मत करवाकर उसे रोज़ पहनाकर स्कूल छोड़ आते थे। उसे मालूम था कि अगर वो स्कूल की दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेगा तो अवश्य जीतेगा। घर की हालत उसे मालूम थी कितनी मुश्किल से उसकी माँ कितने घरों के कपडे लाकर प्रैस करती थी। पापा एक स्कूल के चौकीदार थे। घर में यह बात बताकर वो उनको और ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था।
अचानक ही एक अखबार में उसने एक विज्ञापन देखा जो बच्चा कुश्ती में जीतेगा उसे पाँच सौ रुपए मिलेंगे। उसने अपना नाम कुश्ती खेलने के लिए लिखवा लिया। अब वो उसमें विजयी घोषित हुआ। जब ईनाम दिया जाने लगा तो उसने अपनी एक इच्छा ज़ाहिर की कि मुझे इन रुपयों के बदले जूते दिलवा दिए जाएँ तो मैं अपने स्कूल की प्रतियोगिता में भी हिस्सा ले पाउँगा। उस बच्चे के उत्साह को देखते हुए उसके लिए नए जूतों की व्यवस्था की गई। अब वो उनको पहनकर जब घर पर आया तो पहले उसके माता पिता जी ने उसे बहुत डाँटा कि इतने महँगे जूते तुमने कहाँ से चोरी किये। तुमने कहाँ से पैसे चुराए। जब उनको असलियत पता चली तो उन्होंने अपने बच्चे को प्रेम से गले लगा लिया। उनकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे कि अपने बच्चे पर चोरी का आरोप लगा दिया था। बच्चे ने उनको चुप कराया और बोला मैं आप लोगों को परेशान नहीं करना चाहता था इसलिए आपको मैंने आपसे नहीं खा था नए जूते लाने के लिए। अब तो वो ख़ुशी से अगले रविवार का इंतज़ार करने लगा जब प्रतियोगिता में उसे हिस्सा लेना था। अब वो दिन भी आ गया और उसके माता पिता भी उसे भागते हुए देखना चाहते थे। वो भी गए और वो प्रथम स्थान पर विजयी घोषित किया गया।
इसलिए हिम्मत और मेहनत तथा लग्न से सब हासिल हो सकता है।
@मीना गुलियानी
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