आज के इस युग में व्यक्ति में मानवता लुप्त होती जा रही है। सब अपने स्वार्थ के लिए एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं। जातिवाद पनप रहा है इन्सानियत खोती जा रही है। मानव के अंदर हिंसक प्रवृति ने जन्म लिया है। उसकी मनुष्यता घायल हो चुकी है। वो व्यभिचारी भी बन गया है। अब तो पूरी सभ्यता को सुधारने के लिए ही शायद करोना महामारी आई है। जब धरती पर पाप अत्याचार बढ़ते हैं तब प्रलय आती है।
इस महामारी ने सबको मानव के मूल्यों से परिचय करवा दिया है। सबको भाईचारे का संदेश दिया है। अब धर्म की दीवार किसी की सहायता करते समय आड़े नहीं आती। उस समय सिर्फ मनुष्यता ही दिखाई देती है। जब इतने ज्यादा लोग अस्पतालों में इस महामारी से जूझ रहे हैं हमारे देश के तमाम डाक्टर , नर्स रात दिन उनकी सेवा कर रहे हैं। सभी गली मोहल्लों के लोग हर घर से खाने पीने का सामान एकत्र करके गरीबों में बाँट रहे हैं। गुरूद्वारे में लंगर चलाये जा रहे हैं जहाँ सारी संगत मिलकर लंगर की सेवा कर रही है। इसी प्रकरण पर एक छोटी सी घटना मुझे भी याद आ रही है।
मैंने कुछ मजदूरों को देखा था जिनके साथ छोटे छोटे बच्चे भी थे वो धूप में रोज़ी रोटी की तलाश में फिर रहे थे।अचानक किसी सरदार जी की नज़र उन पर पड़ गई उन्होनें तुरन्त ही उन सबके लिए मुफ्त लंगर की व्यवस्था वहीँ पर कर दी। सबको प्रसादी मिली जबकि कितनी दूर तक उनको किसी ने कुछ नहीं दिया था। एक दूसरे को सेवा करते देखकर बाकी लोगों में भी अब सेवा भाव जग गया है। एक सेठ जी की तरफ से सबको आटा चावल के पैकेट मुफ्त में बांटे जा रहे थे। एक गरीब औरत भी लाईन में लगी थी पर शक्ल से वो किसी मध्यम परिवार की लग रही थी वो आटा चावल कुछ पैसे या मूल्य चुकाकर ही लेना चाहती थी। अब वो लोग भी समझ गए थे कि ये महिला इस समय कुछ ऐसी परिस्थिति होने के कारण ही लाईन में लगी थी इसलिए उससे कहा गया कि आप पचास रूपये में दोनों चीज़ें ले जाओ। उसने ख़ुशी से पचास रूपये दिए और दोनों पैकिट उठा लिए। घर पर जाकर जब उसने वो पैकिट खोले तो दोनों में सौ सौ के नोट रखे हुए थे। इस तरह से वो सेवा भाव रखने वाले लोग हर तरह से सबकी सेवा ताकि किसी को बुरा भी न लगे और ऐसे समय में उसे धन की भी आवश्यकता हो सकती है वो भी पूरी कर सके। इसी तरह से जरुरतमंदों की सेवा बिना किसी को बताए गुप्त रूप से कर रहे थे।
इस समय मानवता का धर्म यही है कि तन,मन,धन से जो भी गरीब परिवार का व्यक्ति जो भी जरूरतमंद हो जिसे दवा की जरूरत हो उसे दवा दिलाई जाए। अस्पताल में पहुँचाने की व्यवस्था करवाई जाए। मजदूरों के वेतन काटे न जाएँ। हर भूखे को भोजन मिले उसमेँ कोई जाति का भेद भाव न किया जाए। इस समय तो सभी भरतीय हैं। हमारे देश में डाक्टर, नर्स, पुलिसकर्मी ,सफाईकर्मी सेवा में दिन रात एक कर रहे हैं। सबसे बड़ी मानवता सेवा धर्म वो लोग निभा रहे हैं। हमें उनका सम्मान करना चाहिए और पूरा सहयोग करना चाहिए। इस आपदा की घड़ी में कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा तभी मानवता परमो धर्म: सिद्धान्त अपना पायेंगे।
@मीना गुलियानी
इस महामारी ने सबको मानव के मूल्यों से परिचय करवा दिया है। सबको भाईचारे का संदेश दिया है। अब धर्म की दीवार किसी की सहायता करते समय आड़े नहीं आती। उस समय सिर्फ मनुष्यता ही दिखाई देती है। जब इतने ज्यादा लोग अस्पतालों में इस महामारी से जूझ रहे हैं हमारे देश के तमाम डाक्टर , नर्स रात दिन उनकी सेवा कर रहे हैं। सभी गली मोहल्लों के लोग हर घर से खाने पीने का सामान एकत्र करके गरीबों में बाँट रहे हैं। गुरूद्वारे में लंगर चलाये जा रहे हैं जहाँ सारी संगत मिलकर लंगर की सेवा कर रही है। इसी प्रकरण पर एक छोटी सी घटना मुझे भी याद आ रही है।
मैंने कुछ मजदूरों को देखा था जिनके साथ छोटे छोटे बच्चे भी थे वो धूप में रोज़ी रोटी की तलाश में फिर रहे थे।अचानक किसी सरदार जी की नज़र उन पर पड़ गई उन्होनें तुरन्त ही उन सबके लिए मुफ्त लंगर की व्यवस्था वहीँ पर कर दी। सबको प्रसादी मिली जबकि कितनी दूर तक उनको किसी ने कुछ नहीं दिया था। एक दूसरे को सेवा करते देखकर बाकी लोगों में भी अब सेवा भाव जग गया है। एक सेठ जी की तरफ से सबको आटा चावल के पैकेट मुफ्त में बांटे जा रहे थे। एक गरीब औरत भी लाईन में लगी थी पर शक्ल से वो किसी मध्यम परिवार की लग रही थी वो आटा चावल कुछ पैसे या मूल्य चुकाकर ही लेना चाहती थी। अब वो लोग भी समझ गए थे कि ये महिला इस समय कुछ ऐसी परिस्थिति होने के कारण ही लाईन में लगी थी इसलिए उससे कहा गया कि आप पचास रूपये में दोनों चीज़ें ले जाओ। उसने ख़ुशी से पचास रूपये दिए और दोनों पैकिट उठा लिए। घर पर जाकर जब उसने वो पैकिट खोले तो दोनों में सौ सौ के नोट रखे हुए थे। इस तरह से वो सेवा भाव रखने वाले लोग हर तरह से सबकी सेवा ताकि किसी को बुरा भी न लगे और ऐसे समय में उसे धन की भी आवश्यकता हो सकती है वो भी पूरी कर सके। इसी तरह से जरुरतमंदों की सेवा बिना किसी को बताए गुप्त रूप से कर रहे थे।
इस समय मानवता का धर्म यही है कि तन,मन,धन से जो भी गरीब परिवार का व्यक्ति जो भी जरूरतमंद हो जिसे दवा की जरूरत हो उसे दवा दिलाई जाए। अस्पताल में पहुँचाने की व्यवस्था करवाई जाए। मजदूरों के वेतन काटे न जाएँ। हर भूखे को भोजन मिले उसमेँ कोई जाति का भेद भाव न किया जाए। इस समय तो सभी भरतीय हैं। हमारे देश में डाक्टर, नर्स, पुलिसकर्मी ,सफाईकर्मी सेवा में दिन रात एक कर रहे हैं। सबसे बड़ी मानवता सेवा धर्म वो लोग निभा रहे हैं। हमें उनका सम्मान करना चाहिए और पूरा सहयोग करना चाहिए। इस आपदा की घड़ी में कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा तभी मानवता परमो धर्म: सिद्धान्त अपना पायेंगे।
@मीना गुलियानी
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