गरीब इन्सान की जिंदगी में तो ठोकरें खाना ही लिखा है। वो तो जबसे जन्म लेता है तबसे ही जिंदगी भर वो दुःख ही झेलता है। दुःखों की गोद में पलता है , बड़ा होता है और हर समय ठोकरें खाने पर मजबूर होता है। कोई उसका सगा नहीं होता क्योंकि आजकल रिश्तेदारी भी पैसों से ही निभती है। ऐसी एक दारुणकथा हरिया की है जो सोनीपत हरियाणा का रहने वाला है। एक किसान परिवार से उसका संबंध है। पिताजी किसान थे तबसे यही काम उसने भी विरासत में सीखा।
घर पर उसकी बूढी माँ , पत्नी और दो बच्चे हैं। पिताजी तो दो साल पहले ही चल बसे थे। उसकी जमीन भी गिरवी पड़ी है साहूकार के पास पिताजी की बीमारी में खूब पैसा लग गया था तो जमीन भी गिरवी करने की नौबत आ गई। दो सालों से खेतों में भी अच्छी फसल नहीं हुई। इस बार तो जो थोड़ी बहुत हुई तो असमय की बारिश और ओले बरसने के कारण सब नष्ट हो गई। साहूकार ने उसे कोई खर्चा पानी के पैसे भी नहीं दिए तो बच्चों को खाना कैसे खिलाए। अब उसने भी सोचा कि शहर में कोई मजदूरी कर लूँगा। उसके पड़ोस में राधे रहता था। उसका भी हरिया जैसा ही हाल था। दोनों बस में बैठकर शहर की तरफ जहाँ मकान बन रहे थे एक जगह पर दोनों मजदूरी पर लग गए। जैसे तैसे गुज़ारा होने लगा वो घर पर कुछ पैसे भेज देता था फिर भी इतना ज्यादा भी नहीं मिलता था कि पूरा परिवार पेट भर खा ले। कई बार तो हरिया खुद तो सत्तू खाकर और पानी पीकर ही अपना गुज़ारा कर लेता था पर घर पर पैसा भेजता था। ईश्वर की लीला भी बड़ी विचित्र है उसका छोटा बेटा अचानक घर के बाहर खेल रहा था तो गिर पड़ा। काफी खून बह गया सिर में गहरी चोट लगी थी जो शायद अंदर की कोई नस फट गई थी इलाज भी गए कि कराया पर ठीक नहीं हुआ वो भी चल बसा।
कहते हैं कि गरीबी में आता गीला वो ही हालत हरिया की हो रही थी। पहले ही खाने को जुगाड़ करने की जुगत में उसके सारे पैसे खत्म हो गए थे रहे सहे बच्चे की बीमारी में लग गए थे। हरिया भी पेट भर न खाता था तो उसका दोस्त कहता था थोड़ी बीड़ी का दम भर लो फिर थोड़ा नशे से काम सही होगा। अब उसको बीड़ी की लत भी लग गई। शाम को सारे दोस्त दारु के ठेके पर मिलते थे तो एक दिन उसने भी दारु पी ली। नशा ऐसा हुआ कि उसने खाना भी नहीं खाया। अब ऐसा कई बार होने लगा कि वो नशे में रहता जब वो खाना नहीं खाता था। उसने सोचा कि इससे थोड़े पैसे बचेंगे पर ये नहीं पता था कि इस नशे के व्यसन ने उसकी सेहत खराब कर दी थी अब उसको खाँसी आती थी। कभी कभी क़फ़ भी आता था। उसने कभी डाक्टर को नहीं दिखाया। राधे के कहने पर सरकारी अस्पताल जरूर चला गया जाँच में टी बी की बिमारी पाई गई। थोड़ा बहुत इलाज कराया फिर छोड़ दिया। क्योंकि दिहाड़ी के काम से उसे दिखाने के लिए अस्पताल जाने के लिए समय नहीं मिलता था। रोग बढ़ता जा रहा था।
उसकी किस्मत भी सौदेबाजी कर रही थी। रही सही कसर लॉक डाऊन ने निकाल दी। दिहाड़ी के सारे मजदूरों ने अपने गाँव में पलायन करना शुरू कर दिया। हरिया के पास तो न पैसों की कोई जुगाड़ थी न ही उसके खेत ही अपने थे। बेचारा जाता भी तो कहाँ। खुद वो अपनी बीमारी और घर के हालात से घबरा गया तो उसने निराश होकर आत्महत्या के लिए सोचा। एक बारगी तो वो सर से पाँव तक काँप गया दूसरे पल सोचा जिन्दा रहेगा तो भी घर वालों के लिए बोझ बन जाएगा। किस्मत ने उसे वापिस उसी रेल की पटड़ी पर छोड़ा जहाँ उसने अपने जीवन की इहलीला समाप्त कर दी। किस्मत की ये सौदेबाजी उसे भी महंगी पड़ी अब उसकी पत्नी को भी बच्चे और खुद का पेट पालने के लिए घर घर जाकर लोगों की चाकरी करनी पड़ती थी और उनकी बुरी नज़रों का शिकार भी बनना पड़ता था। हरिया की पत्नी ने हिम्मत न हारते हुए अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया हालांकि गाँव के कई लोगों ने उसे रोका भी कहाँ से इतने पैसे लाओगी पढ़ाने के लिए पर उसने किसी की न सुनी। उसकी मेहनत रंग लाई। बच्चे ने दसवीं पास करके मैकेनिक का कोर्स किया और किसी गैराज में मैकेनिक का काम करने लगा। अब उस बच्चे ने माँ का घर घर पर जाने का काम भी छुड़वा दिया। इस तरह से उस बच्चे ने घर की काया पलट कर दी जिसका सपना उसकी माँ ने देखा था वो पूरा कर दिखाया। आज उसके पिता की बरसी थी उसकी माँ ने कहा तुम्हारे बापू हरिया भी आज होते तो देखते किस्मत ने क्या सौदेबाजी हमारे साथ की है।
@मीना गुलियानी
घर पर उसकी बूढी माँ , पत्नी और दो बच्चे हैं। पिताजी तो दो साल पहले ही चल बसे थे। उसकी जमीन भी गिरवी पड़ी है साहूकार के पास पिताजी की बीमारी में खूब पैसा लग गया था तो जमीन भी गिरवी करने की नौबत आ गई। दो सालों से खेतों में भी अच्छी फसल नहीं हुई। इस बार तो जो थोड़ी बहुत हुई तो असमय की बारिश और ओले बरसने के कारण सब नष्ट हो गई। साहूकार ने उसे कोई खर्चा पानी के पैसे भी नहीं दिए तो बच्चों को खाना कैसे खिलाए। अब उसने भी सोचा कि शहर में कोई मजदूरी कर लूँगा। उसके पड़ोस में राधे रहता था। उसका भी हरिया जैसा ही हाल था। दोनों बस में बैठकर शहर की तरफ जहाँ मकान बन रहे थे एक जगह पर दोनों मजदूरी पर लग गए। जैसे तैसे गुज़ारा होने लगा वो घर पर कुछ पैसे भेज देता था फिर भी इतना ज्यादा भी नहीं मिलता था कि पूरा परिवार पेट भर खा ले। कई बार तो हरिया खुद तो सत्तू खाकर और पानी पीकर ही अपना गुज़ारा कर लेता था पर घर पर पैसा भेजता था। ईश्वर की लीला भी बड़ी विचित्र है उसका छोटा बेटा अचानक घर के बाहर खेल रहा था तो गिर पड़ा। काफी खून बह गया सिर में गहरी चोट लगी थी जो शायद अंदर की कोई नस फट गई थी इलाज भी गए कि कराया पर ठीक नहीं हुआ वो भी चल बसा।
कहते हैं कि गरीबी में आता गीला वो ही हालत हरिया की हो रही थी। पहले ही खाने को जुगाड़ करने की जुगत में उसके सारे पैसे खत्म हो गए थे रहे सहे बच्चे की बीमारी में लग गए थे। हरिया भी पेट भर न खाता था तो उसका दोस्त कहता था थोड़ी बीड़ी का दम भर लो फिर थोड़ा नशे से काम सही होगा। अब उसको बीड़ी की लत भी लग गई। शाम को सारे दोस्त दारु के ठेके पर मिलते थे तो एक दिन उसने भी दारु पी ली। नशा ऐसा हुआ कि उसने खाना भी नहीं खाया। अब ऐसा कई बार होने लगा कि वो नशे में रहता जब वो खाना नहीं खाता था। उसने सोचा कि इससे थोड़े पैसे बचेंगे पर ये नहीं पता था कि इस नशे के व्यसन ने उसकी सेहत खराब कर दी थी अब उसको खाँसी आती थी। कभी कभी क़फ़ भी आता था। उसने कभी डाक्टर को नहीं दिखाया। राधे के कहने पर सरकारी अस्पताल जरूर चला गया जाँच में टी बी की बिमारी पाई गई। थोड़ा बहुत इलाज कराया फिर छोड़ दिया। क्योंकि दिहाड़ी के काम से उसे दिखाने के लिए अस्पताल जाने के लिए समय नहीं मिलता था। रोग बढ़ता जा रहा था।
उसकी किस्मत भी सौदेबाजी कर रही थी। रही सही कसर लॉक डाऊन ने निकाल दी। दिहाड़ी के सारे मजदूरों ने अपने गाँव में पलायन करना शुरू कर दिया। हरिया के पास तो न पैसों की कोई जुगाड़ थी न ही उसके खेत ही अपने थे। बेचारा जाता भी तो कहाँ। खुद वो अपनी बीमारी और घर के हालात से घबरा गया तो उसने निराश होकर आत्महत्या के लिए सोचा। एक बारगी तो वो सर से पाँव तक काँप गया दूसरे पल सोचा जिन्दा रहेगा तो भी घर वालों के लिए बोझ बन जाएगा। किस्मत ने उसे वापिस उसी रेल की पटड़ी पर छोड़ा जहाँ उसने अपने जीवन की इहलीला समाप्त कर दी। किस्मत की ये सौदेबाजी उसे भी महंगी पड़ी अब उसकी पत्नी को भी बच्चे और खुद का पेट पालने के लिए घर घर जाकर लोगों की चाकरी करनी पड़ती थी और उनकी बुरी नज़रों का शिकार भी बनना पड़ता था। हरिया की पत्नी ने हिम्मत न हारते हुए अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया हालांकि गाँव के कई लोगों ने उसे रोका भी कहाँ से इतने पैसे लाओगी पढ़ाने के लिए पर उसने किसी की न सुनी। उसकी मेहनत रंग लाई। बच्चे ने दसवीं पास करके मैकेनिक का कोर्स किया और किसी गैराज में मैकेनिक का काम करने लगा। अब उस बच्चे ने माँ का घर घर पर जाने का काम भी छुड़वा दिया। इस तरह से उस बच्चे ने घर की काया पलट कर दी जिसका सपना उसकी माँ ने देखा था वो पूरा कर दिखाया। आज उसके पिता की बरसी थी उसकी माँ ने कहा तुम्हारे बापू हरिया भी आज होते तो देखते किस्मत ने क्या सौदेबाजी हमारे साथ की है।
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें