मैंने वक्त को रोकना चाहा था
तुम्हें पल्लू से बाँधना चाहा था
पर कौन किसी के रोके रुका था
ये मेरा केवल मिथ्या भ्रम था
मुझे अपने यौवन का घमंड था
ये न पता वो ढलती छाया था
हाथ न फिर कुछ मेरे आया था
मुट्ठी से रेत सा फिसल आया था
@मीना गुलियानी
तुम्हें पल्लू से बाँधना चाहा था
पर कौन किसी के रोके रुका था
ये मेरा केवल मिथ्या भ्रम था
मुझे अपने यौवन का घमंड था
ये न पता वो ढलती छाया था
हाथ न फिर कुछ मेरे आया था
मुट्ठी से रेत सा फिसल आया था
@मीना गुलियानी
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