नौरत्न और हरिया दोनों सवाईमाधोपुर के रहने वाले दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर थे। पड़ोस में एक मकान बन रहा हे वहीँ पर वो रोज़ दिहाड़ी के हिसाब से मजदूरी करते थे। उन्होंने उसी मकान के पास ही अपने रहने के लिए एक छप्पर डाल दिया और अपने परिवार के साथ रहने लगे। उनका ठेकेदार तो बहुत सख्ती से उनसे पेश आता था। सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खूब काम कराता था सिर्फ आधा घंटा खाना खाने के लिए देता था। हरिया की पत्नी गर्भवती थी। उसे अचानक दर्द हुआ तो डाक्टर के पास जाने के लिए हरिया ने ठेकेदार से अपनी पगार एडवांस में देने को बोला तो भी उसने नहीं दिए। हरिया अपने मित्रों तथा कुछ पड़ोसियों से उधार लेकर डाक्टर के पास पत्नी को दिखाने ले गया। डाक्टर ने उसकी पत्नी को भर्ती कर लिया और बोला कि इसे तो तुरन्त ही एक बोतल खून की चढ़ानी पड़ेगी। अस्पताल में भी खून उपलब्ध नहीं है आपको ही सारी व्यवस्था करनी होगी। अब हरिया और परेशान हो गया। उसके दोस्त नौरत्न ने अपने खून के सैम्पल की जाँच कराई तो मैच हो जाने पर उसका खून हरिया की पत्नी को चढ़ाया गया। ठेकेदार से हरिया ने दो दिन की छुट्टी मांगी तो वो बोला छुट्टी के पैसे काट लूँगा। नहीं तो कहीं और मजदूरी कर लो। मेरे यहाँ तो जब दिहाड़ी पूरी करोगे तभी पगार दूँगा। हरिया मुश्किल में था पर पत्नी की भी तबियत खराब थी उसकी हालत देखकर उसके पास रहना भी जरूरी था। गाँव में उसकी बूढी माँ थी जिसे नज़र भी कम आता था तो उसे बुलाके अपने ऊपर ही पैसों का बोझ बढ़ाने का काम वो नहीं करना चाहता था। इसलिए माँ को बुलाने का इरादा टाल दिया। खुद ही उसकी सेवा करने लगा। पगार से दो दिहाड़ी के पैसे ठेकेदार ने काट लिए। अब सुबह जब डाक्टर ने उसकी पत्नी की जाँच की तो बोला इसका तो आपरेशन करना पड़ेगा बच्चे की नाल गले पर लिपट गई है। अब उसे और पैसों का जुगाड़ करना पड़ा। घर में पत्नी एक मंगलसूत्र और एक जोड़ी टॉप्स पड़े थे उनको बेच दिया कुछ अपने दोस्त से कर्ज लिया। यहाँ तो उसका कोई रिश्तेदार भी नहीं था। हरिया के लिए तो मंहगाई में आटा गीला वाली बात साबित हो रही थी। अब जब आपरेशन हुआ तो बच्चा भी मृत पैदा हुआ। उसे दुःख तो बहुत हुआ उसकी पत्नी तो बहुत रोई उसने पूरे नौ महीने उसे गर्भ में रखा था इतनी परेशानियाँ झेलीं। कितनी उम्मीदें थीं कि बच्चा जब बड़ा होगा तो उनका सहारा बनेगा। अस्पताल से छुट्टी करवाकर हरिया अपनी मजदूरी पर लौट आया। उसकी पत्नी अभी कमज़ोर थी उसे भरपेट भोजन खिलाने में भी वो असमर्थ था। जैसे तैसे करके कभी बिस्कुट चाय या दाल कभी चावल थोड़ा थोड़ा खिला देता। खुद भी भूखा रह जाता पर मजदूरी में तो हरिया
दिन रात जुटा रहता था। उसकी पत्नी बोली कल से मैं भी आपके साथ मजदूरी करने चली चलूँगी ईंटे उठाने या गारा बनाने का काम मिल जायेगा। कुछ पैसे हाथ में आ जायेंगे तो अपने दोस्त का उधार भी उतार देना।
हरिया ने हामी भर ली। उसकी पत्नी कमज़ोर तो थी ही उसने जैसे ही ईंटों का तसला सर पर उठाया तो खुद भी वहीं सड़क पर औंधे मुँह गिर पड़ी और सर से बहुत खून बह गया। दूसरे ही दिन हरिया की पत्नी चल बसी। अब हरिया खुद को कोसने लगा और अपनी लाचारी पर दुखी हुआ। वो पत्नी के मरने के बाद अंदर से टूट गया। पत्नी और मृत बच्चे का गम भुलाने के लिए देसी दारु का सहारा लिया तो खुद भी बीमार पड़ गया। क्योकि जब पेट में अन्न नहीं तो दारु भी क्या करती। नौरत्न ने जैसे तैसे करके उसके गाँव पहुँचाने की व्यवस्था की। क्योंकि यहाँ रहता तो भी मर जाता। दिहाड़ी के मजदूरों की यही कहानी सब जगह देखने को मिलेगी कुछ मजदूर तो लॉक डाउन होने के कारण अपने गाँव या किसी दूसरे गाँव पलायन कर गए रोजी रोटी की तलाश में कुछ हरिया और नौरत्न की तरह मजदूरी करते रहे दुःख सहते रहे और ठेकेदार की गालियाँ सुनते रहे ताकि पेट की भूख शांत हो। यही उनके जीवन की त्रासदी है। कुछ मजदूर जो दुख झेल नहीं पाते वो आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं।
@मीना गुलियानी
दिन रात जुटा रहता था। उसकी पत्नी बोली कल से मैं भी आपके साथ मजदूरी करने चली चलूँगी ईंटे उठाने या गारा बनाने का काम मिल जायेगा। कुछ पैसे हाथ में आ जायेंगे तो अपने दोस्त का उधार भी उतार देना।
हरिया ने हामी भर ली। उसकी पत्नी कमज़ोर तो थी ही उसने जैसे ही ईंटों का तसला सर पर उठाया तो खुद भी वहीं सड़क पर औंधे मुँह गिर पड़ी और सर से बहुत खून बह गया। दूसरे ही दिन हरिया की पत्नी चल बसी। अब हरिया खुद को कोसने लगा और अपनी लाचारी पर दुखी हुआ। वो पत्नी के मरने के बाद अंदर से टूट गया। पत्नी और मृत बच्चे का गम भुलाने के लिए देसी दारु का सहारा लिया तो खुद भी बीमार पड़ गया। क्योकि जब पेट में अन्न नहीं तो दारु भी क्या करती। नौरत्न ने जैसे तैसे करके उसके गाँव पहुँचाने की व्यवस्था की। क्योंकि यहाँ रहता तो भी मर जाता। दिहाड़ी के मजदूरों की यही कहानी सब जगह देखने को मिलेगी कुछ मजदूर तो लॉक डाउन होने के कारण अपने गाँव या किसी दूसरे गाँव पलायन कर गए रोजी रोटी की तलाश में कुछ हरिया और नौरत्न की तरह मजदूरी करते रहे दुःख सहते रहे और ठेकेदार की गालियाँ सुनते रहे ताकि पेट की भूख शांत हो। यही उनके जीवन की त्रासदी है। कुछ मजदूर जो दुख झेल नहीं पाते वो आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं।
@मीना गुलियानी
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