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सोमवार, 4 मई 2020

अस्पताल में बिताई रात

सुषमा मेरी बहुत अच्छी पड़ौसन है।  उसके बेटे की पिछले
साल ही शादी हुई थी।  चाँद सी दुल्हन रत्ना ने उनके यहाँ
कदम रखा।  घर में खुशियाँ आ गईं।  हम दोनों दोपहर की
दिनचर्या से निवृत होकर शाम की चाय पर रोज़ मिला करते
और दुःख सुख की बातें किया करते थे।  कुछ समय बाद में
 चला कि अब नन्हा मेहमान भी आने वाला है।  परसों रात
को ही रत्ना बहू को प्रसव पीड़ा के कारण अस्पताल में भर्ती
कराना पड़ा।  इन दिनों हर अस्पताल में मरीजों की भीड़
बढ़ गई हैसुषमा ।  सुषमा ने उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती
कराया था।  डाक्टर नर्स आदि समय समय पर आकर सब
मरीजों की जाँच आदि कर  रहे थे।  सुषमा मुझे भी अपने साथ
ले गई थी।  क्या पता कब कोई जरूरी काम आ पड़े एक से भले
दो।  नर्स ने सूचित किया कि रत्ना को एक बोतल खून की
आवश्यकता है और बी ग्रुप का खून अस्पताल में उपलब्ध
नहीं है।  आपको खुद ही व्यवस्था करनी होगी।  सुषमा ने
अपना खून का सैम्पल जांच के लिए दिया पर वो मैच नहीं
हुआ तो सुषमा एकदम रुआँसी हो गई।  मैंने नर्स से कहा
आप मेरा खून भी जांच लो शायद मैच कर  जाए।  ईश्वर
कृपा से मेरा खून मैच हो गया अब वो रत्न को चढ़ाया गया।
सुषमा ने मुझे बहुत धन्यवाद दिया कि रत्ना की जान बच
गई।   कुछ समय बाद रना का ब्लड प्रेशर हाई हो गया तो
डाक्टर ने एक इंजैक्शन लगाया तब थोड़ी देर में ठीक हो गया।
वो सारा समय बहुत घबराहट में बिताया।
मरीजों की संख्या रात में और भी बढ़ गई।  कुछ मरीजों के
बिस्तर ज़मीन पर भी लगाए थे।  नर्स भी अपना काम मुस्तैदी
से कर  रही थी।  उसने ड्रिप उतारी कुछ दवाइयाँ सिरहाने रखी
टेबल पर रखीं।  थर्मामीटर लगाया ब्लड प्रेशर की जांच की और
चली गई।  फिर कम्पाउंडर ने जो सैम्पल जांच करने को दिए
थे उसकी रिपोर्ट लाकर रत्ना की फ़ाइल में लगा दी।  रत्ना ने
थोड़ी सी चाय पी।   लगभग दो घंटे के बाद उसने एक पुत्र को
जन्म दिया।  जन्म के बाद बच्चे के रोने की आवाज़ नहीं आई।
सब घबरा गए कि नवजात शिशु को क्या हुआ वो रोया क्यों
नहीं।  तब डाक्टर ने उसे हाथ में लेकर उल्टा लटकाया और
पीठ पर थपकी दी फिर उसके रोने की आवाज़ सुनाई दी।  सबने
चैन की सांस ली।
सबने सुषमा को बधाई दी और रत्ना को भी बधाई दी।  लेबर
रूम में जिस सफाई कर्मी व्र नर्स  ने प्रसव कराया था उनको सुषमा
ने मिठाई व बख्शीश में कुछ इनाम भी दिया वो खुश हो गए।
रात भर पास के कमरे से कराहने की और झगड़ने जैसी आवाज़ें
आ  रही थीं।  उस कमरे के मरीज के साथ जो आये थे उन्होंने
आरोप लगाया की हमारे यहाँ तो पुत्र ने जन्म लिया था पर
नर्स ने हमारा बच्चा बदलकर हमें लड़की दी है।  डाक्टर ने
आकर उन्हें शांत कराया कि यह उनका भ्रम है क्योकि उनके
साथ जिनकी डिलीवरी कराई थी वो बच्चा तो मृत पैदा हुआ
था यह कन्या ही आपकी है।  बड़ी मुश्किल से वो लोग चुप
हुए। सभी तरह के मरीज वहाँ भर्ती थे।  कुछ नवजात शिशु
भी जो पीलिया ग्रसित थे नर्सरी वार्ड में  थे रो रहे थे।  इस
प्रकार अस्पताल में हमने रात जागते हुए समस्याओं से
जूझते हुए बिताई।  सुषमा तो अस्पताल में ही रुक गई थी
पर मैं सुबह अपने घर पर लौटकर आ गई लेकिन वहाँ का
वो समय अब तक दिलो दिमाग पर छाया है भुलाए नहीं
भूलता है।
सच में डाक्टर ,नर्स, सफाईकर्मी अपना काम कितनी ही
मुस्तैदी से करते हैं।  रात दिन अपना आराम छोड़कर वो
मरीजों की देखभाल करते हैं हमें भी उनका सम्मान करना
चाहिए
@मीना गुलियानी


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