यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 7 मई 2020

फिर कब मिलेंगे - कहानी

नीता और राकेश का आज रिजल्ट निकला था राकेश ने अपनी यूनिवर्सिटी में टॉप किया था और नीता ने भी  प्रथम श्रेणी में एम ए  की परीक्षा पास की थी।   राकेश तो आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाना चाहता था लेकिन नीता के माता पिता इतना खर्चा उठाने में असमर्थ थे।   इसलिए उसने सोचा की वो भारत से ही अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करेगी।   उसने एम बी ए का फ़ार्म भर दिया था।   उसका नाम रजिस्टर हो गया था।   राकेश और नीता की दोस्ती स्कूल के समय से ही बहुत अच्छी थी।   दोनों पढ़ने में मेधावी थे।   पहले तो वो प्रेम की परिभाषा से भी अनभिज्ञ थे पर यूनिवर्सिटी तक उनको अब सब समझ आ गया था और उनका प्यार परवान चढ़ता गया।   मन ही मन वो दोनों एक दूसरे के हो चुके थे। 

राकेश ने तो एक दो बार इशारों से ही नीता को बताया भी था कि वो उसे बेहद प्यार करता है।   रोज़ ही बस स्टाप पर वो मिलते थे।   फिर लंच के समय वो इकट्ठे ही एक बैंच पर किसी पेड़ के नीचे खाना खाते थे।   नीता उसके लिए करेले की सब्जी और आम का अचार जब भी घर में वो खाना बनाती  तो राकेश के लिए भी पैक कर देती जिसे राकेश बहुत ही स्वाद और चटकारे लेकर उसे चिढ़ाते हुए खाता था।   दोनोँ में कभी कभी तो छीनाझपटी भी अचार को लेकर हो जाती थी।   ऐसे ही प्यार की शुरुआत हुई थी। एक दिन नीता जब कॉलेज नहीं आई तो राकेश को पता चला कि उसे तो बेहद बुखार था।   सारा दिन बहुत मुश्किल से उसने गुज़ारा शाम होते ही वो उसके घर मिलने गया उसकी माता जी ने बताया कि उसे तो बहुत तेज़ बुखार है।   तुम उससे मिल सकते हो उसने नीता के माथे पर हाथ लगाया तो वो बुखार में तप रही थी।   उसने उसके माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखी।  कुछ देर बाद थोड़ा बुखार कम होने पर नीता ने आँखें खोली और उसको देखकर पूछा तुम कब आये।  मैं तो सुबह से ही तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी।  राकेश ने कहा अभी अभी आया हूँ तुम्हारे बिना मन नहीं लग रहा था सो मिलने आ गया।  नीता के घर वालों को भी राकेश का शालीनतापूर्ण व्यवहार अच्छा लगता था।  इसलिए उन्होंने कभी भी उनके आपस में बातें करने मिलने पर कोई रोक नहीं लगाई।   दोनों प्यार करते थे पर मर्यादा की सीमा में रहकर ही कभी इस दायरे को  किसी ने भी लांघने का प्रयास नहीं किया। 

नीता अब ठीक हो गई थी फिर वो रोज़ जब भी मिलते तो अपने भविष्य से सम्बन्धित बातों में खोकर सपने देखते रहते।   आखिर अब वो घड़ी भी आ पहुँची जब राकेश को पढ़ाई के लिए विदेश जाना था।   सारी व्यवस्था हो चुकी थी नीता उसे छोड़ने एयरपोर्ट गई थी।   जब वो विदा हो रहा था तो उसने नीता के हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा  था अब जल्दी ही पढ़ाई पूरी करके इन हाथोँ को तुम्हारी माता जी से हमेशा के लिए मांग लूँगा।  क्या तुम दो साल तक मेरा इंतज़ार कर  सकोगी।   नीता का दिल भर आया वो रुआंसी होकर बोली राकेश मैं तो जिंदगी भर तुम्हारी प्रतीक्षा कर सकती हूँ।   तुम वहाँ जाकर मुझे भूल मत जाना।   कभी कभी फोन पर बात कर लेना।   अब उसका नाम पुकारा गया तो उसने जाते जाते नीता को फ़्लाईंग किस किया और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया।   नीता भी राकेश की माता जी से कभी कभी घर जाकर हाल चाल पूछ लेती थी।   अब समय अपनी गति से चलता रहा।   नीता की माता जी एक दिन चक्क्रर आने पर रसोई में ही गिर गईं तो नीता को डाक्टर ने पूरी जाँच करके बताया कि इनके दिमाग की नस में थोड़ी सूजन है।  इलाज थोड़ा लम्बा होगा पर ठीक हो जायेंगी।   नीता के पिताजी तो इतना अधिक कमाते नहीं थे इसलिए अब नीता ने पार्ट टाईम में नौकरी भी पढ़ाई के साथ ही शुरू कर दी ताकि उसकी माता जी का सही इलाज हो सके।   राकेश की पढ़ाई भी अब पूरी हो चुकी थी वो भी लौटने वाला था।  अब वो दिन भी आया जब राकेश को आना था।   राकेश ने नीता को फोन करके आने को बोला था।  वो एक सूती साड़ी पहनकर उससे मिलने एयरपोर्ट गई।   रास्ते में जब बातों का सिलसिला चला तो राकेश ने उसकी माता जी के बारे में पूछा तो उसने बता दिया कि उनकी हालत अब पहले से कुछ ठीक है।   अब वो पार्ट  टाईम  नौकरी कर रही थी उसके बारे में भी बताया।   राकेश ने कहा मैं कल घर मिलने आऊँगा।     नीता के ये दो साल दो सदियों समान बीते कितने कठिन वो पल थे जो राकेश की याद में बिताये  और अपनी माता जी की बीमारी में बिताए।   राकेश भी सब जानकर भावुक हो गया था।  नीता कह रही थी और वो सुन रहा था कि रोज वो मन में कहती थी कि  कब आकर मिलोगे।   अब तुम आ गए तो मेरी तमन्ना पूरी हो गई।   राकेश अपने वायदे के अनुसार उसके घर दूसरे दिन अपनी माता जी के साथ गया।  उसकी माता जी ने नीता की माता जी से कहा अब तो जल्दी से ही मैं नीता को अपने घर की बहू बनाना चाहती हूँ।   नीता की माता जी ने कहा बहिन जी आपको  तो पता ही है कि हमारा और आपका स्टेट्स बहुत अलग है। हम तो दो जोड़ों में ही इसे विदा कर  पायेँगे।   राकेश की माता जी बोली हमें दहेज़ का लोभ नहीं है।  इतने अच्छे संस्कार जो आपने इसे दिए हैं वही  इसका दहेज़ है।  राकेश भी इसे ही चाहता है।   जहाँ से इसने पढ़ाई की थी उनकी एक ब्रांच भारत में भी है जहाँ राकेश को मैनेजर का पद उसे दिया गया है और अगले महीने से ज्वाईन करना है।   अब तो आप 
अगले महीने का कोई अच्छा सा मुहूर्त निकलवा लो और इन दोनोँ बच्चों की शादी कर  दो।   नीता की माता जी 
सुनकर बहुत खुश हुईं उनकी आँखें भी छलछला गईं।   दोनों परिवारों ने मिलकर शादी का मुहूर्त निकलवाया और राकेश ने भी उसी दिन सुबह ज्वाईन किया और शाम को उसकी सादगी से शादी भी हो गई।   बाद में राकेश के परिवार ने अपने सभी रिश्तेदारों को दावत दी।   नीता के  इंतज़ार की घड़ियाँ कि उसके साजन राकेश कब मिलने आयेंगे खत्म हुईं और दोनोँ सदा के लिए एक दूसरे के हो गए। 
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें