यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019

बाधा न करें

घर पहुँचते पहुँचते लगा जैसे कुछ पीछे छूट गया
लगा कोई प्यारा साथी हमसे आज रूठ ही गया
कितने अरमानों से इस घर को बसाया था हमने
वो सपना भी तो टूट गया जाने क्या किया हमने
इस आशियाने को सितारों से हमने सजाया था
तिनका तिनका जोड़कर घर हमने बसाया था
तन और मन दोनों साथ नहीं चलते हैं कभी कभी
जब मन नहीं आगे बढ़ना चाहता तो पाँव भी
वहीँ रुक जाते हैं उम्मीद के पँख लगाके रखो
समय समय पर तन और मन को परखा करो
ताकि दोनों हिलमिलकर चलें बाधा न करें
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें