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रविवार, 20 अक्टूबर 2019

चाहे जब बंद करे

ज़िन्दगी की रील में सब कैद हो गया
जीवन तो खेल तमाशा है एक दाव है
कोई खिलाड़ी जो चतुर होता है वह
इसे बहुत होशियारी से खेलता है
अनाड़ी इस खेल में पिछड़ जाता है
इस रील में बचपन से ढलती उम्र की
दास्तान दर्ज़ है जब जी चाहे देख लो
बचपन की हँसी ,नादानियाँ ,शैतानियाँ
भोलापन नटखट प्यारा सा बचपन
अल्हड़पन का शर्माना ,इतराना ,बातें
बनाना , जुल्फें लहराना ,खिलखिलाना
नज़रों से जादू चलाना सब इसमें लबरेज़ है
फिर भी ज़िन्दगी की असली रील तो सिर्फ
उस ऊपरवाले के हाथ में है चाहे जब बंद करे
@मीना गुलियानी

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