यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

मेरी भी बढ़ गई

ख़्वाबों की खिड़कियाँ खुल गईं
नींद मेरी आँखों से उड़ गई
खुशबु हवाओं में बिखर गई
तेरी चुनरिया सरक जो गई
बदन में सिहरन सी भर गई
पेड़ से बेल सी तू लिपट गई
तो धड़कन मेरी भी बढ़ गई
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें